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हिन्दी-राष्ट्र
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कि समस्त हिन्दी-भाषा-भाषियों को एक प्रान्त के रूप में संगठित करना व्यवहारिक नहीं है। बिहार और राजस्थान के पृथक् सूबे रहने में कोई विशेष क्षति भी नहीं है किन्तु वर्तमान संयुक्त प्रान्त के टुकड़े होना किसी अवस्था में भी नहीं सोचा जा सकता। कभी कभी कुछ छोटे छोटे स्वार्थों के कारण आगरा और अवध को अलग करने की चर्चा सुनाई पड़ने लगती है और कुछ बातों में इसका आरम्भ भी हो गया है। वास्तव में आगरा और अवध के भाव को बिलकुल मिटा देने की आवश्यकता है। हिन्दी-भाषा-भाषियों का कल्याण इसी में है कि बंगाल की तरह सूबा हिन्दुस्तान के भी पूर्वी और पश्चिमी टुकड़े न हों। प्रान्त का नाम बदल जाने से इसमें बहुत सहायता मिलेगी। दिल्ली से काशी तक का देश बिलकुल एक है। दिल्ली के नन्हे से प्रान्त के साथ संयुक्त प्रान्त के कुछ पश्चिमी ज़िलों को मिला देने की चर्चा भी कभी-कभी सुन पड़ती है। राष्ट्रीयता की दृष्टि से यह भी अत्यन्त हानिकर होगा। दिल्ली नगर वास्तव में हिन्दुस्तान का नगर है। जैसे बंगाल प्रान्त में कलकत्ता नगर में भारत की राजधानी थी उसी तरह सूबा हिन्दुस्तान के दिल्ली नगर में राजधानी रह सकती है। सच तो यह है कि दिल्ली ज़िले का अलग प्रान्त रखना भी उचित नहीं है।

अपने वर्तमान प्रान्त के टुकड़े करने का प्रस्ताव तो किसी रूप में भी नहीं सोचा जा सकता। हिन्दी-भाषा-भाषियों के जीवित