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हिन्दी-राष्ट्र को दृढ़ तथा स्थायी बनाने के उपाय
 

रहने के लिये कम से कम ४½ करोड़ लोगों का तो एक प्रान्त के रूप में रहना नितान्त आावश्यक है।

वास्तव में प्रश्न यह है कि हमारे जो देशवासी पड़ोस के प्रान्तों में बिखरे पड़े हैं वे मुख्य प्रान्त में आकर एक जगह एकत्रित हो सकें। ऐसे मुख्य मुख्य भाग निम्नलिखित हैं :—

(क) पश्चिम में दिल्ली कमिश्नरी—अर्थात् दिल्ली, अम्बाला रोहतक, कर्नाल, हांसी, हिसार—हिन्दी-भाषा-भाषी प्रदेश है। यह पंजाब से अलग करके अपने प्रान्त में आ जाना चाहिये।

(ख) दक्षिण में मध्यभारत की ग्वालियर, पन्ना, रींवा आदि हिन्दी-भाषा-भाषी रियासतों का सम्बन्ध रामपुर, बनारस आदि की तरह अपने प्रान्त से होना चाहिये।

(ग) हिन्दुस्तानी मध्यप्रान्त के १४ ज़िलों का भी शेष हिन्दी-भाषा-भाषियों के साथ मिल जाना दोनों के लिये हितकर होगा। मध्यप्रान्त के नेताओं की इसमें अवश्य थोड़ी सी क्षति है किन्तु हिन्दी राष्ट्र के स्थायीहित के लिये उन्हें अपने क्षणिक लाभ को त्याग देना चाहिये।

(घ) पूर्व में बिहार प्रान्त के शाहबाद, चम्पारन तथा सारन के तीन ज़िले भोजपुरी बोलनेवाले हैं। इनका भी संयुक्त प्रान्त में आ जाना उचित प्रतीत होता है क्योंकि भोजपुरी प्रदेश का बड़ा अंश इसी प्रान्त में है।

ऊपर के हिन्दी प्रदेशों में से जितने भी अधिक मांग भावी सूबा हिन्दुस्तान के साथ एक में संगठित हो सकेंगे हिन्दी-भाषा-भाषियों