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हिन्दी-राष्ट्र
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का बल उतना ही अधिक बढ़ सकेगा। हिन्दीराष्ट्र का मुख्य भाग वर्तमान संयुक्त प्रान्त के रूप में अभी भी सुरक्षित है। यदि इसे बढ़ाया न जा सके तो कम-से-कम इसे छिन्न-भिन्न तो नहीं ही होने देना चाहिये।

हिन्दी उर्दू की समस्या

तीसरा मुख्य प्रश्न भाषा के ऐक्य का है। भारतवर्ष के प्रत्येक राष्ट्र में एक ही सर्वमान्य राष्ट्रीय भाषा है। बंगाल तक में जहां ५० फ़ीसदी बंगाली मुसलमान-धर्मावलम्बी हैं बंगला ही बंगाल-राष्ट्र की भाषा है। किन्तु हमारी कठिनाइयों को बढ़ाने के लिये हिन्दीराष्ट्र में हिन्दी और उर्दू के रूप में दो प्रान्तिक भाषाओं के होने को जटिल समस्या भी उपस्थित है। हमारे यहां की हिन्दी उर्दू तथा हिन्दू मुसलमान की समस्यायों का वैसा निकट का सम्बन्ध नहीं है जैसा प्रायः लोग समझते हैं। संयुक्तप्रान्त में केवल १४ फ़ीसदी मुसलमान धर्मावलम्बी हिन्दुस्तानी हैं। उर्दू केवल इन हिन्दुस्तानी मुसलमानों की ही भाषा नहीं है। इसके पोषक तो हिन्दुस्तानी काश्मीरी, कायस्थ, खत्री, वैश्य, ब्राह्मण आदि हिन्दू भी रहे हैं और हैं। अपने प्रान्त को रोहिलखंड, मेरठ, और आगरे की पश्चिमी कमिश्नरियों तथा दिल्ली कमिश्नरी में हिन्दुओं के घरों में अब भी उर्दूभाषा और फ़ारसी लिपि का ख़ूब प्रचार है। इसका मुख्य कारण दिल्ली आगरे के मुसलमानी केन्द्रों का प्रभाव है। इन भागों में अब भी सरकारी कारबार में उर्दू का ही व्यवहार होता है।