व्यवहारिक दृष्टि से कुछ दिनों तक बच्चों को फ़ारसी लिपि भी साथ साथ बाद को सिखलाई जा सकती है।
मेरी समझ में हिन्दी राष्ट्र के हितैषियों को अपनी संपूर्ण शक्ति पश्चिमी 'हिन्दुस्तान' में विशेषतया हिन्दुओं के बीच में हिन्दी और देवनागरी लिपि के प्रचार में लगानी चाहिये। प्रत्येक हिन्दुस्तानी बालक की शिक्षा हिन्दी और देवनागरी लिपि से आरम्भ होनी चाहिये। हिन्दी सीख लेने के बाद वह जितनी अधिक भाषायें चाहे सीख सकता है। यदि एक बार भी अपने राष्ट्र के ८५ फ़ीसदी हिन्दुओं ने हिन्दी अथवा हिन्दुस्तानी को अपना लिया तो फिर हिन्दी-उर्दू की समस्या बहुत कुछ सुलझी हुई समझनी चाहिये। बिना लकड़ी के बेंट के जंगल को काट सकना सरल नहीं रह जायगा।
राष्ट्रीय भाव को लगाना
चौथा और अन्तिम मुख्य प्रश्न राष्ट्रीयता के भाव को जाग्रत करने का है। राष्ट्र का ठीक नाम हो जाने, हिन्दी-भाषा-भाषियों के एक जगह एकत्रित हो जाने, तथा दो प्रान्तिक भाषाओं की समस्या सुलझ जाने से राष्ट्रीय जीवन बहुत कुछ बल पकड़ सकेगा। किन्तु इतना कर लेना पर्याप्त नहीं है। राष्ट्रीयभाव में अपने लोग सबसे अधिक पिछड़े हुए हैं अतः इस सम्बन्ध में स्पष्ट रूप से प्रयत्न करने को आवश्यकता है। अपने यहाँ राष्ट्रीयभाव को प्रान्तीयता का नाम देकर उसे नीच दृष्टि से देखा जाता है। भारतीय और राष्ट्रीय समस्याओं के भेद को समझने