पृष्ठ:हिंदी राष्ट्र या सूबा हिंदुस्तान.pdf/९३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
८३
हिन्दी राष्ट्र को दृढ़ तथा स्थायी बनाने के उपाय
 

का यत्न ही नहीं किया जाता। हमारे राष्ट्र में अखिल भारतीय नेताओं की कमी नहीं है किन्तु सच्चे राष्ट्रीय-प्रान्तीय-नेता ढूंढे नहीं मिलते। अतः सब से पहली आवश्यकता इस बात की है कि अपने देश के बड़े लोगों में से कुछ अपने केा हिन्दीराष्ट्र की उन्नति में ही खपा दें। उन्हें यह नहीं भुलाना चाहिये कि हिन्दी-भाषा-भाषियों के द्वारा ही वे भारतवर्ष को सच्ची सेवा कर सकते हैं।

इसके अतिरिक्त भविष्य के हिन्दी साहित्य का निर्माण राष्ट्रीय आवश्यकताओं को दृष्टि में रख कर होना चाहिये। आजकल इस ओर बिलकुल भी ध्यान नहीं दिया जा रहा है। उदाहरण के लिये बंगाल, महाराष्ट्र, गुजरात आदि के कई इतिहास लिखे गये हैं। जिन्हें उन राष्ट्रों के प्रथम श्रेणी के विद्वानों ने राष्ट्रीय दृष्टि से लिखा है। हिन्दी में हिन्दीराष्ट्र के विशाल इतिहास की अभी कल्पना भी नहीं हो पायी है। जब हिन्दुस्तानी विद्वान ही भारत के इतिहास और हिन्दी-राष्ट्र के इतिहास में भेद नहीं कर पाते तो भारत के अन्य राष्ट्रों के अथवा विदेशों के विद्वानों से क्या आशा की जा सकती है! जैसे प्रान्त का भूगोल पढ़ा जाता है वैसे ही प्रान्त का इतिहास भी तो हो सकता है। यह बात भी नहीं भुलानी चाहिये कि हिन्दी साहित्य के भिन्न भिन्न आग का जैसा सीधा सम्बन्ध हिन्दी-भाषा-भाषियों से है वैसा भारत के अन्य राष्ट्रों से नहीं हो सकता। "भारत भारती" पंजाब, बंगाल, उड़ीसा, गुजरात, आन्ध्र तथा तामिल देशों में नहीं पढ़ी जाती है तब फिर "भारत-भारती" "हिन्द-भारती"