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हिन्दी-राष्ट्र
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क्यों न हो? हमारे साहित्य से हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति सब से प्रथम होनी चाहिये।

राष्ट्रीयता के भाव को जाग्रत करने में पत्र तथा पत्रिकाओं से बहुत बड़ी सहायता मिल सकती है। यह सच है कि कुछ अखिल भारतीय प्रश्न हैं किन्तु साथ ही जीवन के प्रत्येक अंग से सम्बन्ध रखने वाली सैकड़ों राष्ट्रीय समस्यायें भी हैं जिनके साथ हिन्दी भाषा-भाषियों का, हित अनहित सम्बद्ध है। हमारी पत्र पत्रिकाओं का उद्देश्य हमारी जनता का ध्यान इस राष्ट्रीय समस्याओं को सुलझाने की ओर विशेष होना चाहिये। यह बात अन्य प्रान्त की पत्र पत्रिकाओं का अध्ययन करने से आसानी से समझ में आ सकती है। प्रान्त की प्रारम्भिक तथा माध्यमिक शिक्षा की क्या आवश्यकतायें हैं? हमारे विश्वविद्यालय किस नीति से चलाये जा रहे हैं? हमारे यहां के किसान और जिमींदारों का सम्बन्ध किस तरह मधुर बनाया जा सकता है? हमारे राष्ट्र के उद्योग-धन्धे कौन कौन हैं और उनमें किस तरह सुधार हो सकता है? हमारे यहाँ के तीर्थ स्थानों और मन्दिरों में किन परिवर्तन की आवश्यकता है? हिन्दुस्तानी स्त्रियों की दशा सुधारने के लिये क्या प्रयत्न होना चाहिये? इस तरह के अगणित राष्ट्रीय प्रश्न हैं जिनका बंगाली, गुजराती तथा उड़िया लोगों से किसी प्रकार का भी विशेष सम्बन्ध नहीं है। इन्हें तो हम लोगों को सुलझाना है। संपादकों का कर्तव्य है कि हिन्दी पत्र पत्रिका के द्वारा इन विषयों की ओर अपने राष्ट्र का ध्यान आकर्षित करें।