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हिन्दी-राष्ट्र को दृढ़ तथा स्थायी बनाने के उपाय
 

 

राष्ट्रीय भाव को स्थायी बनाने की कुंजी

ऊपर के उपायों के द्वारा राष्ट्रीय भाव जाग्रत हो सकेगा किन्तु उस भाव को स्थायी बनाने के लिये यह आवश्यक होगा कि देशवासी राष्ट्रीय हित के आगे जाति-पांति तथा धर्म इत्यादि को गौण स्थान देना सीखें। वर्तमान सामाजिक तथा धार्मिक व्यवस्था अथवा अव्यवस्था के रहते हुये राष्ट्रीय भाव जड़ नहीं पकड़ सकता। अपने देश में धर्म्म और समाज के रूप में सदा परिवर्तन होता रहा है और अब एक बार फिर परिवर्तन करना अनिवार्य हो गया है। राष्ट्रीय नेताओं का कर्तव्य है कि उन सामाजिक और धार्मिक बुराइयों को दूर करने का पूर्ण उद्योग करें जिनके कारण राष्ट्र शन्तिहीन हो गया है और सैकड़ों वर्षों से गुलामी करते हुए भी अपमान का अनुभव नहीं करता है। जाति-पांति के भेद-भाव और घृणा तथा, धार्मिक अन्धविश्वास और अनुदारता को छोड़ना ही पड़ेगा।

मेरा दृढ़ विश्वास है कि हिन्दी-भाषा-भाषियों के उद्धार का उपाय हिन्दीराष्ट्र को दृढ़ तथा स्थायी बनाने में है। इसीमें भारत तथा मनुष्य मात्र का हित भी सन्निहित है। भारत के प्रत्येक राष्ट्र के उन्नत तथा दृढ़ होने पर ही राष्ट्रसंघ भारतवर्ष के स्थायी पुनरुत्थान की संभावना हो सकती है। भारत माता के प्रत्येक पुत्र को बलिष्ठ, स्वावलंबी और सुखी होना चाहिये। निर्बल, पराधीन और दरिद्र पुत्र एक दूसरे की क्या सहायता करेंगे और क्या उनके द्वारा माता को सेवा हो सकेगी?