पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/२६४

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२६३ उद्भवकर-उद्भिविद्या "स्थलजोदकशाकानि पुष्पमूलफलानि च । । उद्भित् (सं० पु०) १ तरु गुल्मादि, पेड़ भाड़ वगै- मेधाउचोद्भवान्चद्यात् स्नेहाय फलसम्भवान् ।" ( मनु ६।१३) . रह। २ निर्भर, झरना। ३यागभेद। (वि.) २ विष्णु । (त्रि.) कतरि अच । ३ उत्पत्तिमान्, | उद्भिद देखो। उपजनेवाला। ४ संसारातीत, दुनियासे निराला। उद्भिद (स. त्रि.) उत्-भिद विप । १ उद्भिज्ज, उडवकर ( स० त्रि० ) उत्पन्न करनेवाला, जो उगने वाला। २ भेदक, तोड़ डालनेवाला। उपजाता हो। उभिद (सं० पु.) उत्-भिद-क । १ वृक्षादि, उद्भाव ( पु.) १ उत्पत्ति, पैदायश। २ चित्तौ पेड़ वगैरह। (लो) २ पांशुलवण, मतबखी दार्य, सखावत। ३ उमा, उमस। . नमक। (त्रि.) ३ भूमिको भेदकर उतपत्र होने- उद्भावन (सं० ली.) उत्-भू-णिच -ल्युट । १ कल्पन, वाला, जो जमीन् फोड़ कर निकलता हो। अन्दाज । २ उत्पादन, पैदा करनेका काम।। उद्भिदजल (सलो ) वृक्षजल विशेष, पेड़का ३ चिन्तन, खयाल । ४ उत्क्षेपण, उछाल । ५ अज्ञात | पानी। मरुभूमिमें पान्थपादप नामक एक प्रकारका विषय प्रकाश, न समझो बातका खोलाव। (त्रि.) वृक्ष उपजता है। उसका कोई स्थान काटनेसे खिग्ध ६ प्रकाशक, जाहिर या रौशन करनेवाला। ७ चिन्ता- | और शीतल जल निकलता है। उत्तप्त वालुकामय कारक, फिक्रमन्द। मरुभूमिमें चलते समय पथिक उक्त जल पोकर ही उद्भावना (सं० स्त्री० ) १ कल्पना, अन्दाज । जीते-जागते हैं। उसी जल का नाम उभिदजल है। २ उत्पत्ति, पैदायश। उभिद्विद्या (स'० स्त्री०) जिस शास्त्र द्वारा उद्. उद्भावयिट . (स' त्रि.) उन्नतिकारक, ऊपर उठा भिक विषयका सकल तत्त्व समझते, उसे उद्भिद्- देनेवाला। विद्या ( Botany) कहते हैं। यह विज्ञानशास्त्र को उद्भावित (सं० वि०) १ उपेक्षाकृत, खयालमें न एक शाखा है। उद्देश्य-उद्भिद् सकल को रोति लाया हुआ। २ कथित, कहा हुआ। और प्रकृतिका अनुसन्धान लगाना है। उद्भास (स• पु०) उत्-भास भावे घज । प्रकाश, उद्भिद सजीव एवं वर्धिष्णु होता और प्राणि- चमक । २ शोभा, खुबसूरती। गणको भांति जन्म लेता, फिर समय पाकर मृत्यु के उद्भासन (स० क्लो०) उत्-भास्-ल्यट। १ उद्दीपन, मुखमें गिर पड़ता है। मस्तिष्क न रहते भो यह चमकाहट। २ उज्ज्वल करण, उजलाहट। (त्रि.) अनुभवको शक्ति रखता है। सूर्यास्तके पीछे कोई ३ प्रकाशक, चमकानवाला। कोई उद्भिद पत्रको लपेट सो जाता है। वह समझ उदासयत (स. त्रि०) प्रकाशक, जो रौशन कर भी सकता, चतुष्याच कैसा गुजरता है। हमारे रहा हो। देहमें जैसे रक्त, उसके देहमें वैसे ही रस कार्य किया 'उहासवत् (स० त्रि०) प्रकाशमान, चमकदार। करता है। फिर जाति सम्पर्कोयता भी देख पड़ती उभासित (सं० त्रि.) उत्-भास्-क्त। १ दीप्त, है। उद्भिद् मामा माई लता प्रभृति एवं अनेक चमकाया हुआ। २ शोभित, सजाया हुअा। . मित्र और शत्र रखता है। उद्भासिन् (स० त्रि०) दैदीप्यमान, चमकदार।। प्रथम वह वीज रूप पर रहता, जिसके भूमिमें उद्भिज, डगिज देखो। पड़नेसे अङ्करित होता है। उस समय उत्ताप, जल उद्भिज्ज (संत्रि०) उद्भिनत्ति क्विप उद्भित् तथा और वायुके यथोचित साहाय्य का प्रयोजन है। क्योंकि . सन् जायते जन-ड। भूमिको भेदकर जन्म लेनेवाला, | ताप, जल और वायु न मिलनेसे वौजस्थ अङ्कर जो जमीनको फोड़कर निकलता हो। (काण्डस्थ भ्रूण ) फिर कैसे पनपेगा ! उद्भिज्जविद्या, उद्भिविद्या देखो। अङ्गु रोत्पत्तिको प्रथमावस्था पर भ्र णके स्वकार्य