पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/३५७

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उपावसु-उपासक उपावसु (स'० वि०) धनप्रदान करनेवाला, जी । शाखांमें पुपुष्य फूटता है। त्वक् अत्यन्त स्थल दौलत बखू शता हो। होती हैं। उसमें अस्त्राघात लगानेसे निर्यास निक- उपावहरण (स क्लो०) निम्न प्रानयन, नीचे लानका लता है। यह निर्यास अतिशय विषाक्त है। कणा- काम। मात्र जीवदेहके शरीरमें छिद जानेसे तत्क्षणात् सर्व- उपावासी (सं० पु०) उप-आ-वस-णि नि। उपकारी, शरीरमें विष फैल प्राणविनाश करता है। यवद्दीपके फायदा पहुंचानेवाला। अधिवासी अपने शरके अग्रभागपर यह निर्यास लगा, उपावत् (वै० स्त्री०) उप-आ-वृत-क्त। १ पूर्णित, उसे शत्र के प्रति फेंकते हैं। जिसके वह शर लगता.. घूम पड़नेवाला। २ प्रतिनिवृत्त, छूटाहुआ। ३ क्लान्ति उसे अवश्य मरना पड़ता है। (हिं०) २ उपवास, निवारणके अर्थ भूमिपर लुण्ठित, थकाहट निकाल फ़ाका, खाना-पीना छट जानेको हालत । नेके लिये जो जमीन्पर लोट गया हो। ४ आगत, उपासक (सं० त्रि०) उप-आस-खल। १ सेवक, पहुंचा हुआ। ५ योगा, लायक । (पु.)६ भूमिपर खिदमतगार। २ उपासनाकारक, परस्तिश करने- लुण्ठित् अश्व, ज़मीन्पर लोटाहुआ घोड़ा। वाला। यथा-"चिन्मयस्वाद्वितीयस्य निष्कलस्वाशरीरिणः । उपासनीय (स. त्रि.) भविष्यतमें आशा किया . उपासकानां सिद्धार्थ ब्रह्मणो रूपकल्पना ॥” जानेवाला, जो आयिन्दाके लिये परखा जाता हो। उपासकोंको सिद्धिके अधै उस चिन्मय. अदितीय उपाश्रय (स० पु०) उप-आ-शि-अच् । १ स्थान, | और निर्गुण परब्रह्मको नानाविध मूर्ति कल्पित हुआ जगह। २ मत्तहस्ती, मतवाला हाथी। ३ साहाय्य, करती है। जो सद्गति पाने वा पुरुषार्थ लानेके लिये सहारा। ४ विश्वास, भरोसा। (त्रि०) ५ आश्रयका सगुण अथवा निर्गुण ब्रह्म की उपासना करते है, स्थल, पनाहको जगह। उन्हें उपासक कहते हैं। उपाश्चित (स० त्रि.) उप-आशि-ता। आश्चय ग्रहण भारतवर्ष में नानाप्रकारके उपासक विद्यमान हैं। किये हुआ, जो सहारा पकड़ चुका हो। २ रक्षक, उनमें वैष्णव, शाक्त, शैव, और गाणपत्य पांच प्रकारके मुहाफिज। उपासक ही प्रधान समझे जाते हैं। उपास-१ एकप्रकारका विषवृक्ष। यह यवदीप और "शैवानि गाणपत्यानि शाकानि वैषणवानि च । उसके निकटस्थ स्थानों में उपजता है। इसे प्रोङ्कार साधनानि च सौराणि चान्यानि यानि कानि च ॥ श्रु तानि तानि दैवेश त्वइक्वानिःसृतानि च ॥" ( तन्त्रसार ३य परि०), विष्णुके उपासक वैष्णव, शक्तिके उपासक शाला, शिवके उपासक शैव, सूर्यके उपासक सौर और गणेशके उपासक गाणपत्य कहलाते हैं। उक्त उपासक वैदिक और तान्त्रिक भेदसे दो प्रकारके होते हैं। फिर पांचो प्रकारके उपासक नाना शाखा-प्रशाखाओंमें विभक्त हैं। उनमें कतिपय नाम उद्धत करते हैं- ___ वैष्णवसम्प्रदाय-रामानुज, श्रीवैष्णव, आचार, रामानन्दी, संयोगी, कबीरपन्थी, खाकी, मूलकदासी, दादूपन्थी, रैदासी, सेनपन्थी, रामसनेही, मध्वाचारी, वा 'उपास' कहते हैं। देय ८०५० फीट होता | वल्लभाचारी, मौरा, निमात, विट्ठल, चैतन्य, स्पष्टदायक, है। इसकी सर्वोच्च शाखामें स्त्रीपुष्प और अधः- | कर्ताभजा, रामवल्लभी, साहबधनी, बाउल, न्याड़ा,