पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/४३०

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ऋग्वेद-ऋघा ४२६ तिथि काण्ख, यमनाशन प्राजापत्य, यजत आत्रेय, सिन्धुक्षित् प्रैयमेध, सिन्धुहोप आम्बरीष, सुकक्ष यज्ञ प्राजापत्य, यम वैवखत, यमी, यमी वैवखती, आङ्गिरस, सुकीर्ति काक्षीवान, सुतम्भर आत्रेय, (क्षोहा ब्राह्म, राइगण आङ्गिरम, सुदास् पैजवन, सुदीति आशिरस, सुपर्ण कख, हव्य पात्रे य, रात्रि भारद्वाजी, राम जामदग्न्च, सुपर्ण तायपुत्र,सुबन्ध गौपायन, सुमित्र कौत्स,सुमित्र रेणु वैश्वामित्र, रेभ काश्यप, गेमशा:, लव ऐन्द्र, वाध्राव, सुराधा वार्षागिर, सुवेदा शरीषि, सुहस्ता लुश धानाक, लोपामुद्रा, वत्स पाग्नेय, वत्स कागव, घोषिय, सुहोत्र भारद्वाज, सूनु अाभव, सूर्या सावित्री, वत्सप्रि भालन्दन, दम्र वैखानस, वरु आङ्गिरस, वरुण, 'सोभरि काख, सोम, सोमाहुति भागव, स्तम्बमित्र ववि आत्रेय, वश अश्वा. वसिष्ठ मैत्रावरुगि, वशिष्ठः शाङ्ग, सूत्रमरश्मि भागव, स्वस्तयात्रेय, हरिमन्त पुत्रगण, वसु भारद्वाज,वसुकण वासुक्र, वसुक्रिद वासुत्रा, प्राङ्गिरस, हर्यत प्रागाथ, इविर्धान आङ्गिरस, हिरण्य- वसन ऐन्द्र, वसा वासिष्ठ, वसक्रपत्नी. वसुनना गर्भ प्राजापत्य, हिरण्यस्तपत्राङ्गिरस । रोहिदश्व, वसुश्रुत प्रात्रे य, वसुयव प्रात्रे य, वाग् ऋक्संहिता पढ़नेसे पायजातिका आदिम इति- प्राम्भणी, वातजति वातरशन, वामदेव गौतम, विन्ट हास, प्राचीन आचार-व्यवहार, धर्म मत एवं विश्वास आङ्गिरस, जति वातरशन, विप्रवन्ध गौपायन वा प्रभृति सकल अवश्य ज्ञातव्य विषय समझ पड़ता है। लौपायन, विभ्राट् सौर्य, विमद ऐन्द्र, विरूप प्राङ्गिरम, आर्य शब्द देखो। विवस्वान भादित्य, विवहा काश्यप, विश्वक काष्णि, समिनिय करने का कोई उपाय नहीं, ऋक्संहिता विश्वकर्मा भौवन, विश्वमना यख, विश्ववारा प्रायो, किस समय संग्रहीत हुई थी। सम्भवतः जिस समय विश्वसामा आत्रेयी, विश्वामित्र गाथिन, विश्वावसु आर्य सभ्यता चारो ओर फैलने और सुसभ्य आर्य- देवगम्भव, विष्णु प्राजापत्य, विठव्य प्रारिस, वीतव्य मण्डली अग्निपूजा प्रचार करनेकी लिये नाना देश आङ्गिरस, वृशजार, वृषगण वासिष्ठ, वृषाकपि ऐन्द्र, खुमने लगी, उसी प्राचीन काल हापरके शेषभागपर वृषास्क वातरशन, वेण भार्गव, दैखानस (शत), व्यश्व : कृष्ण पायनके हाथ प्रथम वेदको सहिताकै सग्रहको आङ्गिरस, ब्याघ्रपाद वासिष्ठ, शंयु वाईस्पत्य, शकपूत नोव पड़ो। मोचमूलर प्रभृति युरोपीय पण्डितों के नार्मेध, शक्ति-वासिष्ठ, प्रालयामायन, शची पौलोमी. कथनानुसार ऋग्वेदका छन्दस भाग ईसाको उत्- शतप्रभेदन वैरूप, शवर काक्षीवान्, शशकण कागख, पत्तिके १००० वत्सरसे पूर्व बना था । उन्होंने भी मुक्त शखत्याङ्गिरस, शार्यात मानव, शास भारद्वाज, कण्ठसे ऋक्संहिताको समय सभ्य-जगत्का आदि शिखण्डिनी, शिवि औशीनर, शिरिम्बिठ भारद्वाज, ग्रन्थ माना है। वेद शब्दमें विस्तारित विवरण देखो। शिशु आङ्गिरस, शुन:शेप आजिगति, शुनहोत्र One thing is certain : there is nothing भारद्वाज, श्यावाश्व आत्रेय, श्यन श्राग्ने य, श्रद्धा more ancient and primitive, not only in India, but in the whole Aryan Torld, than कामायणी, श्रुतकक्ष आङ्गिरस, श्रुतवन्धु गौपायन वा the hymns of the Rig-reda." (Max Miller's लोपायन, श्रुतिविद् श्रात्रेय, श्रुष्टिगु काख, संवनन Origin and growth of Religion, p. 152) पाङ्गिरस, संवरण प्राजापत्य, सम्बत आङ्गिरस, सङ्कुसुक किसी समय ऋग्वेदको प्रतिशाखाके ब्राह्मण, बार- यामायन, सत्यति वारुणि, सत्यश्रवा पात्रेय, सदाफूण खक, सूत्रादि प्रचलित थे। किन्तु अब केवल ऐत. आत्रेय, सध्रि वैरूप, सर्वस काख, सप्तर्षि, सप्तगु रेय ब्राह्मण, शाजायन ग्राह्य एवं श्रौतसूत्र, आश्वला. पाङ्गिरस, सप्तध्रि पात्रेय, सप्ति वाजभर, सप्रय यन श्रौत और गृह्य सूत्र ही मिलते हैं। भारद्वाज, सरमा देवशुनौ, सव हरि ऐन्द्र, सव्य आङ्गि- ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषत, श्रीवस व, सयस व प्रचति शब्द देखो। रस, सस पात्रेय, सहदेव वार्षागिर, साधन भोक्न, ऋघा (स. स्त्री०) ऋ-घन, गुणाभावः। हिंसा, सारिसक्क शाङ्ग, सापरानो, सिकता निवावरी, | मारने काटनेको तबीयत । Vol. III. 108 :