पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/५५९

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औदच्चि-ौदीच्य चौदच्चि (स• पु०सी० ) उदवस्यापत्यम्, इन।। इञ्। १ ऋग्वैदियोंके तर्पणीय एक ऋषि । २ उद- सदच षिके पुत्रादि, उदञ्चको औलाद। | वाहके पुत्रादि। पौदमिक (सं० वि०) ओदन शिल्पमस्थ, प्रोदन- औदखित (सं० लो०) उद खित्-अण् । उदलितो उप । सूपकार, पाचक, नानबाई, दाल-रोटी बनाने ऽन्यतरस्याम् । पा ४।२।१६। १ अधै जलयुक्त घोल, पाधा वाला। २ नियत समयपर मोदन प्राप्त करनेवाला, पानी मिसा मट्ठा। (वि०) २ घोल-निर्मित, जो जिसे बंधे वक्त पर दलिया मिले। मठेमें बनाया गया हो। प्रौदन्ध (सं.पु.) मुण्डिम ऋषि। औदश्विक (सं० लो०) उदखित ठक, ठस्य कः। मौदन्यि (स.पु.) प्रोदन्यस्यापत्वं पुमान्, पौदन्च असुमुक्तान्तात् कः। पा श५१ । अधं जलमिश्चित घोल, छ । पौदन्य ऋषिके पुत्र। आधा पानी मिला मढ़ा या छाच । प्रौदपान (सं० वि० ) उदपामादागतः, उदपान-अण् । औदस (हिं• पु०) अपयश, बदनामी। सखियादिभ्योऽथ । पा UP १ राजपाद्य, बादशाहको | प्रौदना (हिं. स्त्री०) दुर्भाग्य, प्राफत, तकलीफ। दिया जानेवाला। ३ उदपान ग्रामसम्बन्धीय । ३ जल- औदस्थान (सं. त्रि.) उदस्थानं शीलमस्व, हा धरसम्बन्धीय, जो वेंया भरनेसे निकाला गया हो। छवादिभयो पः । पा ४७६२। जलवासशील,पानी में रहनेवाला। प्रौदमेधीय. (स.वि.) उदमेधेरिदम्, उदमेधि-छ। औदात (हिं.) अवदात देखो। . रैबतिकादिभाचपाश। सदमेधि सम्बन्धीय । बौदान (हिं.) अवदान देखो। प्रौदयक, चौदयिक देख। पौदार्य (सं० क्लो.) उदारस्य भावः, उदार वा ।। प्रौदयिक (स.वि.) उदये सम्बकाले भवः, उदय-१ उदारता, सखावत, वाजिब खर्च में हाथ न सकनेको उम। सम्बकाखोल्पन, ग्रहके उदयसे सम्बन्ध रख- हालत। २ वाक्यका एक गुण, बासकी बड़ाई। नेवाला। (पु.) २ इदयको एक भावना। पहले वाक्य के अर्थ गौरवको औदार्य कहते हैं। ३ साविक किये हुये कर्मों से दयमें उपजनेवाले सङ्कल्प-विकल्प नायकका एक गुण। शोभा, कान्ति, दीप्ति, माधुर्य, को जैन 'बौदयिक' करते हैं। और धैर्य सात गुण नायकके स्वाभाविक हैं। निरन्तर औदरिक (सं• वि०) उदरे प्रसितः, उदर-ठक् । विनीत भावका ही नाम औदार्य है। ४ वेदान्तोल १लुधित, भूखा। २ उदरमान पोषक, सिर्फ पेटको एक मनोवृत्ति। मनोवृत्ति शान्त, घोर और मूढ़ भरनेवाला, पेट। विविध होती है। फिर वैराग्य, क्षान्ति और पौदर्य (सं• वि.) उदरे भवः, यत् ततः स्वार्थे | पौदार्यको घोर मनोवृत्ति कहते है। (पञ्चदशौ ) पण । १ सदरस्थित, जो पेटमें हो। २ अभ्यन्तर- औदासीन्य (स.ली.) उदासीनस्य भावः. उदासीन- प्रविष्ट, भीतर घुसा हुपा। (को०) ३ साम, | था । १ उदासीनता, लापरवाई। विपद् और तांबा। ४ मदनपाल, मैनफल । ५ उदुम्बर फल, सम्पदसे उपेक्षा रखनेका नाम औदासीन्य है। अनु- गूलर। रागको निवृत्ति, शौकको अदममौजदगी । औदास्य ( स. क्लो० ) उदासस्य भावः, उदास- तादि छह प्रकारके ऋषियों में एक रहे। २ सामविशेष।। थञ् । १ वैराग्य, जबका मसला। २ पमुरागादि औदवापि (सं.पु. स्त्री०) उदवापस्यापत्यम, उदवाप शून्यता, ख.शी वगैरहको अदम-मौजदगी। अमनो- इज । उदयापके पुत्रादि, उदवापको औलाद। योग, लापरवाई। ४ उपेचा, अदम-तनदेहो।। पौदवापीय (सं० वि०) औदवापरिदम, छ । भौद- | श्रौदीच-गुजरातो ब्राह्मणों को एक श्रेणो। औदीच बापि-सम्बन्धीय। ११ प्रकारके होते हैं-१ सिद्धपुरी, २ सिहोरी, ३ तो- औदवादि (स.पु.) उदवाहस्थापत्यम्, उदवार- सको, ४ कुनबिया, ५ मोचिया, ६ दरजिया,७ गन्धर्वो,