पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/६०६

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___कॉनौका-कचकना चिणक, ज्योतिका, पारावतपदो, पण्डालता, पीत-1 उत्तर दिया-दोनोंका विच्छेद मेरे लिये कष्टदायक तण्डुला, सुकुमारी पौर कुकुन्दनी है। कङ्गुनी है; इस लिये वही विधान कीजिये, जिसमें दोनोंका धातुशोषक, पित्तलेमनाशक, रुक्ष, वायुवर्धक, पुष्टि- प्राण बचे। फिर शुक्राचार्य बोल उठे-कच! तुम कारक, गुरु और भग्नसन्धानकारी होती है। (राजवलम) देवयानौका मेहताभ कर सिह बन गये हो; हम कङ्गनीका (सं० स्त्री०) कङ्गणोधान्य, एक अनाजी घास। तुम्हें सच्चोवनी विद्या देते हैं, तुम निकलकर हमें कङ्गुनीपत्रा (सं० स्त्री०) कॉन्याः पत्रमिव पत्रमस्याः, जिला देना। इसी प्रकार कचने सच्चीवनी विद्या मध्यपदलो०। पण्यान्धा नामक तृणविशेष, एक घास.। लाभ कर उदरसे निगमनपूर्वक शुक्रको जिलाया था। कङ्गल (सं० धु.) कङ्गलाति गृह्णाति अनेन, कङ्ग- अनन्तर देवयानौने उनसे विवाह करना चाहा, किन्तु ला-क। इस्त, हाथ। उन्होंने सम्बन्ध-दोषसे उनका कहा न माना। देव- कङ्ग, कडु देखो। यानीने उससे व्यथित हो अभिशाप दिया था-. कर (सं० पु०) कङ्गं लाति अनन, कङ्ग-ला-क तुम्हारी विद्या निष्फल जायेगी। कचने भी देवयानीको लस्य ः। हस्त, हाथ । 'तुम क्षत्रियपत्नी होगों अभिशाप दे कहा-तमने कच (सं० पु.) कचते शोभते शिरसि, कच पदाद्यच ।। अन्याय अभिशाप दिया है; इसलिये इमारी विद्या १ केश, बाल। २ शुष्क व्रण, सूखा जखम। ३ मेघ, निष्फल जाते भी जिसे सिखायेंगे, उसे रस विद्यामें बादल। ४ बन्ध, पट्टो, लपेट। ५ शोभा, खूबसूरती। सिह पायेंगे। यही कहकर वह देवपुरीको चलाये। ६ बालक, बच्चा। ७ वत्स, बछड़ा। ८परिच्छदका (भारत, सम्भव० ३६ अ०) कोर, पोशाकका किनारा। वृहस्पतिपुत्र । __(हिं० वि० ) १० कच्चा। यह शब्द समासमें महाभारतमें कचका चरित्र इस प्रकार वर्णित है- | पाता है। (पु.) ११ शब्दविशेष, एक पावाज। . देवासुरयुके समय देवनिहत पसुरको दैत्यगुरु जब कोई चीज़ किसी चीज में चुभती, तब 'क' की शुक्राचार्य सचीवनी विद्याके बलसे फिर जिला देते आवाज़ निकलती है। कुचलनेका शब्द भी 'क'ही थे। देवगुरु वृहस्पतिमें यह विद्या न रहनसे देवगणने कहाता है। अत्यन्त भौत हो गुरुपुत्र कचको शुक्राचार्यसे यह कचक (हिं. स्त्री०) पाघातविशेष, एक चोट। विद्या सीखनेके लिये अनुरोध किया। कच भी दबने या कुचलन में 'कचक होती है। देवकार्य साधनके लिये शुक्राचार्यका शिष्यत्व ग्रहण | कचकच (हिं• पु०) वितण्डावाद, बकझक, चिकचिक, कर निरतिशय भक्तिसे सेवामें लगे थे। क्र रमति | बातोंका झगड़ा। ' असुरीने कचको अभिप्राय समझ क्रमशः दो बार मार कचकचाना (हिं० क्रि०)१ वाकयुद्द करना, बातोंका डाला। शुक्रकन्या देवयानीने नेहवश पितासे अनुरोध झगड़ा लगाना, कचकच मचाना। २ क्रद होना, कर उन्हें दोनों बार जिलाया था। तीसरी बार दैत्योंने कचका देह खण्ड-खण्ड कर मद्यके साथ शुक्राचार्यको कचकड़ (हिं. पु.) १ कच्छपकपाल, , कछुवेको खिला दिया। उस समय भी देवयानी उनके जोवनके! खोपड़ी। २ कच्छप वा ह्वेल मत्स्यका अखि, ककुवे लिये पितासे अत्यन्त अनुरोध करने लगीं। शुक्राचार्यने या खेल मछलीको हड्डी। चौना और जापानी कन्याके अनुरोधसे उन्हें जिलानकी इच्छा कर कंचकड़के खिलौने बनाते हैं। पूछा था-कच कहां हो। कचने उदरके भीतरसे | कचकड़ा, कचकर देखी। अपना वृत्तान्त बताया। फिर शुक्राचार्यने निरुपाय कचकना (हिं. क्रि०) १ किसी भारी चीजके नीचे हो कहा था. कच को बचानेमें हमें मरना पड़ेगा, पड़ना, दबना, क्रुचलना। २ आघात लगना, ठोकर नतुवा उदरसे वह कैसे बाहर निकलेगा।. देवयानीने | बैठना। Vol. III. 152