पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/६२४

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कजराई-कजिङ्ग ६२३ हैं। (वि०) ३ श्यामवर्ण नेत्रविशिष्ट, जिसकी। तालाब में डाली और सम्बन्धियों को बांटो जाती है। अांखें काजल या काजल-लगी जैसी रहें। गीतविशेष, एक बरसाती गाना। इसे हरियाली कजराई (हिं. स्त्री०) श्यामता, कालापन। तीजतक गाते हैं। कजरारा (हिं.वि.) १ कजलयुक्त, काजल लगा कजली-तौज (हिं. स्त्रो०) भाद्रकृष्णतीया, भादा हुअा। २ श्यामवर्ण, काला। बदी सोज। सजरी (हिंस्त्रो०)१रागविशेष, बरसातमें गानेको कजलीवन (हिं. पु.) १ कदलीवन, कैलेका जंगल। एक रागिणो।२ पर्व विशेष, एक त्योहार। कमलौ देखो। २ अासाम प्रान्तका एक वन। इसमें हाथी बहुत (पु.)३ धान्यविशेष, काले रंगका एक धान। रहते हैं। कजरौटा (हिं. पु.) १ कज्जलपावविशेष, काजल कजलौटा, कमरौटा देखो। रखनेको एक डब्बी। यह छिछला रहता और लोहेसे | कजलौटी, कनरौटो देखी। बनता है। कजरौटेको डंडी पतली होती है। कजही (हिं. स्त्री.) कायजा देखो। २ पात्रविशेष, एक डब्बी। इसमें गोदना गोदनेको | कजा (हिं. स्त्री०) १ कांजी, मांड। २ मृत्य, स्याही रखते हैं। मौत। कजरौटी (हिं० स्त्रो०) क्षुद्र कज्जलपानविशेष, छोटा कजा (अ. स्त्रो०) मृत्यु, मौत । कजरौटा। कजाक (हिं.) चाक देखो। कजलबाश (तु• पु०) मुगलजातिविशेष, मुगलोंको कजाको (हिं० ) कृष्णाको देखो। एक कोम। यह बड़े सड़ाके होते हैं। कजावा (फा० पु.) जेटको एक काठी। इसको कजला (हिं. पु.) १ पक्षिविशेष, एक चिड़िया। दोनों ओर एक-एक मनुष्यके बेठनेको जगह पार , यह काला होता है। २ कज्जल, काजल। ३ काली असबाब रखनेको जाली रहती है। पोखका बेल। (वि.) ४ काली पांखवाला। कजिङ्ग (सं० पु.) महाभारतोता भारतका एक कजलाना (हिं.कि.) १ श्यामता पाना, काला प्राचीन जनपद। ( भोपपर्व) सिंहलियों के धर्मग्रन्थ में पड़ जाना। २ बुझना, कम पड़ना। ३ कज्जल | इस स्थानका नाम 'कजङ्घले नियमें लिखा है। लगाना, आंजना। चीना परिव्राजक यएन चुयने "कि-च-हो-खि-लों" कजलो (हिं. स्त्री०) १ श्यामता, कालिख । २ चणे- (कजुघोर वा कयङ्गल) नामसे इस जनपदका विशेष, एक बुकनी। पारा और गन्धक एक साथ उल्लेख किया है। उन्होंने कहा,-"यह जनपद पोसनेसे कजली बनती है। ३ इक्षुविशेष, किसी प्रायः २.०० लि (डेढ़ सौ कोस) विस्तृत है। किस्मको अख। यह बईमानमें होती है। ४ एक, यहांको भूमि समतल एवं उर्वरा देख पड़ती और गाय। इसकी पांख काली रहती है। ५ किलो यथारीति जुतती है। शस्य यथेष्ट उपजता है। जल- . किस्मकी सफेद भेड़। इसको आंखके पास काले वायु उष्ण है। अधिवासी सरल हैं। वह विद्या बाल होते हैं। पोस्तेको एक बीमारी। इसमें और विद्यानका पादर करते हैं। यहां ७ बौद -फूलोंपर कालो-कालो धस बैठ जाती, जो फसल को | साराम और दश (हिन्दुवोंके) देवमन्दिर बने हैं। हानि पचाती है। पर्व विशेष, एक त्यौहार। बहुतसे लोग देवताके दर्शनको पाते हैं। कई सौ यह बुदेलखंडमें श्रावणी और युक्त प्रदेशमें भाद्रण- वर्ष हुये यहां के राजा मर गये थे। उसके बाद यह वृतौयाको होती है। कच्ची मोपर लगे यवके पङ्कर जनपद निकटस्थ राजाके अधीन शासित होने लगा। किसी सरोवर में फेंके जाते हैं। इसी दिनसे कजली सकल नगर उच्छद हो गये हैं। अनेक अधिवासी .फिर नहौं गाते ८ यवके नवीन पर। यह इधर उधर ग्रामों में जा बसे हैं। इस जनपदके दधिर