पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/७१७

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कनफुची स्वच्छन्दसे रहे हैं। सम्भवतः उसोको बिगाड़नेके । गुरुसे सामान्य सामान्य विषयोंपर तर्क उठा सन्देह लिये यह व्यक्ति इधर-उधर घूमते फिरता है। इसो मिटा लेते रहे। इधर प्रथम श्रेणीके जेनियेन गुरुके प्रकार सकल स्थलों में राजासे ले सामान्य प्रजा पर्यन्त अत्यन्त प्रियपात्र थे। कनफ ची उन्हें पुत्रको भांति आपातमुख में मुग्ध हो कनफुचीका उपदेश अग्राह्य चाहते रहे। ३१ वत्सरके वयसमें जैनियेनके अकाल करने लगी। फिर अनेक स्थलों में दुष्ट लोगोंने इनके प्राण छोड़ने पर शोकदुःख-विजयो ज्ञानीपुरुष ठहरते प्राणविनाशकी चेष्टा भी की थी। किन्तु ईश्वरको | भी यह प्रियशिष्यको मायासे अत्यन्त अभिभूत हुये थे। इच्छासे कोई कृतकार्य न हुवा। एक दिन कनफ चौने अन्य सकल शिष्योंको बोला कह ___ कनफुची वृथा घमते न रहे। प्रत्येक नगर और दिया-देखो! इतिपूर्व हमने नानाविध दुर्गति पायो प्रत्येक ग्राममें इनके दो-चार शिष्य हो जाते थे। और दुःसह यन्त्रणा उठायो है सही, किन्तु ऐसी कनफु ची साधारण लोगोंकी नीतिशिक्षा तथा धर्म मनोवेदना कभी नहीं पायो। जैनियेनके मरनेपर शिक्षा लिये इयाभो, सान, इड, चिङ्गटङ्ग और मङ्ग इयेन नामक शिष्यने इनके उस स्नेहका स्थल पधि- भारः प्रभृति चीनां मनीषियोंके न्याय एवं दृष्टान्त कार किया था । गुणसे वशीभूत हो यह जेनियेनकी प्रचार करते रहे। इसीसे ज्ञानी व्यक्ति इन्हें उक्त सकल भांति इयेनह को भी चाहने लगे। प्राचीन महात्मावोंका प्रतिनिधि मान आदर देते थे। भ्रमणकाल कनफ चौके जीवनमें कई घटनायें क्रमशः इनके शिष्यों की संख्या तीन हजार हो हुयौं। बृहत् शिष्यदलके लिये इन्हें बहुत विव्रत गयी। वहं सकल भ्रमणकालपर गुरुके साथ ही बनना पड़ता था। प्रायः सर्वदा आश्रयका प्रभाव साथ घमते थे। इन्होंने शिष्यों को शिक्षा देनेको रहता और मध्य मध्य तीन दिन तक खानेको पत्र सुविधाके लिये चार श्रेणियों में विभाग किया। सकल | न मिलता, जिससे दोन हौनको भांति इनका समय विषयों में पारदर्शी, बुधित्तिको चालनामें यथेष्ट निकलता। एक बार इनका दल विषम अभावमें निर्मलताप्राप्त, विशुद्ध धर्मपथावलम्बी एवं ऐकान्तिक पा महालेश पा रहा था। उसो कष्ट से अभिभूत हो चित्तसे ईश्वर के प्रति भक्तिमान् प्रथम श्रेणीके शिष्य एक दिन टिजुलू नामक शिष्यने पूछा-गुरु ! . गिने जाते थे। द्वितीय श्रेणीमें वाक्पटुता, शास्त्राभ्यास सर्वश्रेष्ठ और सर्वापेक्षा बुद्धिमान् मनुष्यको भी क्या तथा मृतक के पारदर्शी रहे। बतीय श्रेणीके छात्रो को अभावमें आना पड़ता है। इन्होंने उत्तरमें कहा- | राजनीति अतिविषदरूपसे सिखा मांदा- 'श्रभावमें आते भी वह व्यक्ति सर्वश्रेष्ठ और सर्वा- को शिक्षकताके कार्य में लगा देते थे। फिर | पेक्षा बुद्धिमान्को भांति कार्य करता है। साधारण श्रेणीके शिष्य लोगों को सिखानेके लिये साधा- लोग ऐसे स्थलपर अभिमूत हो अपनी सुधबुध मूल रणको बोधोपयोगी सरल भाषामें नीति तथा धर्मशास्त्र जाते हैं। बनाते रहे। फिर ग्रामों, नगरों और राज्यों में प्रायः ___कनफु चौ अपने कृतनियमादि अचान्त एवं ५.०.शिष्य प्रधान प्रधान पदों पर नियुक्त भी थे। इन ईश्वर-प्रेरित समझते और कभी कभी शिष्यों के मध्य चारो श्रेणियों के शियों में दश जन प्रधान समझे जाते यह बात कहते थे। किन्तु अनेक यह बात मानते वे-प्रथम श्रेणीके जेनियेन, मेचेकन, जेनपिमिउ एवं न रहे। एक दिन कथाके प्रसङ्गमें टिजिकङ्ग नामक शकर, द्वितीय श्रेणोके चेंगो तथा चुकङ्ग, तीय शिष्यने कहा-'आपके नियमादि सर्वापचा उतकृष्ट श्रेणीके इयनेन एवं किल और चतुर्थ श्रेणीके सिहेन होते भी किसी राज्यके लोग किसी प्रकार पालन कर तथा सिहिया। द्वितीय श्रेणीके टिजुल और टिजिकल न सकेंगे। सुतरां उन्हें कुछ बदल लोगोंके भव- बडे अनुसन्धिवसापरवश एवं तार्किक थे। वह सर्वदा सम्बनोपयोगी बना देना अच्छा है।' इन्होंने उत्तर १. मांदारिन शब्दसे चौनके मन्त्रियोंका बोध होता है | दिया-कषक यन एवं परित्रम उठा क्षेत्रको उत्तम-