पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/७८

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इलोरा इलोरा ( एलरा)-बम्बई होपके पूर्वाश दौलताबादसे। लोग अनुमानसे बुद्धको परिचर्या में नियुक्त किये गये मिला हुवा एक पार्वत्य स्थान। गुहामन्दिरों के लिये मालम पड़ते हैं। इससे दक्षिण दूसरा मन्दिर है। इसमें यह बहुत दिनोंसे प्रसिद्ध है। यहां स्थानीय पर्वत | भी उपविष्ट बुद्ध और अनेक पद्मगुच्छधारी नरनारियों- खोद-खोद कर मन्दिर बनाये गये हैं। बौद्ध, हिन्द्र की मूर्तियां हैं। इस मन्दिरके बाद अनेक विहार और जैन इन पृथक् पृथक धर्मावलम्बियोंको देवमूर्तियां और जलाशय देख पड़ते हैं। उक्त गुहासे आगे कुछ इसको समस्त गुहाओंमें प्रतिष्ठित देख पड़ता हैं। ऊपर जानेसे विश्वकर्माको गुहा मिलती है। यहां ___प्राचीन हिन्दूशास्त्रमें इसे ग्रीष्मेश्वर नामक शिवका | विश्वकर्मारूपी बुद्धमूर्ति प्रतिष्ठित है। इस मूर्ति को तीर्थ बताया है। इसे देखनेके लिये लाखों बौद्ध, | | पूजने नाना स्थानके बढ़यो यहां पाया करते हैं। जैन और हिन्दू लोग यहां पहले पाया करते थे। ___इस गुहासे आगे कुछ ऊपर हितल नामक भारतवर्ष में अनेक स्थानपर गुहामन्दिर विद्यमान | एक गुहा है। पहले केवल इसका एकतल दीख हैं। किन्तु उन सबमें इलोराके गुहामन्दिर ही सर्वा पड़ा था, जो मट्टीसे भरा था। १८७६ ईमें पेक्षा विस्तत बने हुये हैं। अर्धचन्द्राकृति-पर्वतके मट्टी खोदते खोदते नीचे के तलको सिडी निकलों। दक्षिण भुजपर बौद्धमन्दिर, उत्तर भुजपर इन्द्र पोछे स्थान परिष्कार करनेसे मन्दिर और गुहाका सभा अथवा जैन-मन्दिर और मध्यस्थलपर हिन्दू उद्दार हुवा। यहां बुद्धदेव, पद्मपाणि, वज्रपाणि देवदेवियोंके मन्दिर हैं। प्रभृति बोधिसत्त्व और दूसरो भी अनेक मूर्तियां विद्य- ___ दक्षिण-भागको गुहायें अतिप्राचीन हैं। किसी- मान हैं। इसके बाद त्रितल गुहा दिखाई पड़ती किसीके अनुमानसे ये सन् ३५० और ५५० ई०के है। इसको कारीगरी बहुत भड़कीली है। दीवार बीच में बनाई गई थी। इस भागको यहांके लोग पर फल कढे हैं और नानाप्रकारके मनुष्य बने हैं। ढेरावाड़ कहते हैं। प्रथम गुहा एक बौद्ध-विहार है। एक स्थानमें बुद्धमूर्ति सिंहासनपर बैठी है। यह समा- इसमें बड़े-बड़े आठ घर बने हैं। दूसरी नाट्यमन्दिर | सोन मूर्ति प्रायः आठ हाथ ऊंची है। अन्यस्थलपर जैसी है। यह लोगोंके उपासना करनेका स्थान मालम सात ध्यानावस्थ बुद्ध उपविष्ट हैं। उनके देखते ही होता है। इसके बरामदेमें बहुतसी बौद्ध देवदेवियोंकी | ऐसा मालम पड़ता है मानो पाषाणके मध्य भी जीवन मूर्तियां हैं। तीय गुहा प्रथम ही जैसी है। है। प्रकृत ही वे अपार्थिव ध्यानमें निमग्न हैं। किन्तु वह प्रथम और द्वितीय दोनो से अधिक | इसके सिवा लोचना, तारा, मामुखी प्रभृति बोधि- प्राचीन नम होती है। अवशेष पांच गुहायें बिल- सत्व-रमणियोंको मूर्तियां भी उसी स्थानपर अलङ्कत कुल खण्डहर हैं। एकमें बृहदाकार लोकेश्वरको को गयो हैं। यह गुहा बौद्धोंके महायान सम्प्रदाय मर्ति प्रतिष्ठित है। इसके भैरववेश देखनेसे मनमें द्वारा बनायी गई मालम होती है। भक्ति और भयका सञ्चार होता है। पर्वतके मध्यस्थलपर त्रितल गुहाके निकटसे हिन्दू. उक्त गुहावोंको लांघकर कुछ ऊपर चढ़नेसे महार देवदेवियों के मन्दिर आरम्भ हुए हैं। ये गुहामन्दिर बाड़ा गुहा मिलती है। यह एक विस्तीर्ण विहार | प्रायः १५।१६ बने हैं। बौद्ध-निर्मित गुहाओं की तरह है। यह प्रायः ११७ फौट गहरी और साढ़े अट्ठावन इन मन्दिरों में भी विस्तर शिल्पनैपुण्य और असाधारण फीट चौडी है। इसका छज्जा २४ खम्भोंपर खड़ा है। भास्करकार्यका परिचय मिलता है। विशेषतः बौद्धोंकी इसी गुहाविहारमें बौद्ध दरबार लगता था, ऐसी गुहाओंसे हिन्दुवांके मन्दिर अधिक सुसज्जीभूत हैं। किम्बदन्ती है। इसके वाम प्रवेशद्वारपर ध्यानावस्थामें | उनमें रावणको खाई, कैलास, रामेश्वर, नोलकण्ठ, एक पद्मासन बुद्धमूर्ति विराजमान है। इसके चारो | तेलोका गण, कुंभारबाड़ा, जनवास और गोपी- ओर पद्मछत्रधारी स्त्री-पुरुषोंकी मूर्तियां खड़ी हैं। ये | मन्दिरके दृश्य प्रधान हैं। Vol. III. 20