पृष्ठ:हिंदी व्याकरण.pdf/१०

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प्रणालियों का उपयोग किया गया है। इसके पीछ पं० श्रीलाल का "भाषा-चंद्रोदय" प्रकाशित हुआ जिसमे हिंदी व्याकरण के कुछ अधिक नियम पाये जाते हैं। फिर सन् १८६९ ईसवी में बाबू नवीनचंद्र राय कृत "नवीन-चद्रोदय" निकला। राय महाशय पंजाब-निवासी बंगाली और वहाँ के शिक्षा-विभाग के उच्च कर्मचारी थे । अपने अपनी पुस्तक में “भाषा-चंद्रोदय" का उल्लेख कर उसके विषय में जेा कुछ लिखा है उससे आपकी कृति का पता लगता है ।आप लिखते हैं-'भाषा-चद्रोदय' की रीति स्वाभाविक है, पर इसमें सामान्य वा अनावश्यक विषयों का विस्तार किया गया है,और जो अत्यंत आवश्यक था अर्थात् संस्कृत शब्द जो भाषा में व्यच-हृत होते हैं उनके नियम यहाँ नहीं दिये गये" । “नवीन-चद्रोदय मे भी संस्कृत-प्रणाली का आशिक अनुसरण पाया जाता है। इसके पश्चात् पं० हरिगोपाल पाध्ये ने अपनी "भाषा-तत्व-दीपिका" लिखी। पाध्ये महाशय महाराष्ट्र थे, अतएव उन्होंने मराठी व्याकरण के अनुसार, कारक और विभक्ति का विवेचन, सस्कृत की। रीति पर, किया है और कई एक पारिभाषिक शब्द मराठी-व्याकरण से लिये हैं। पुस्तक की भाषा में स्वभावत मराठीपन पाया जाता है। यह पुस्तक वहुत-कुछ अँगरेजी ढंग पर लिखी गई है । लगभग इसी समय ( सन् १८७५ ई० में ) राजा शिवप्रसाद का हिंदी-व्याकरण निकला। इस पुस्तक में देा विशेषताएँ हैं । पहली विशेषता यह है कि पुस्तक अँगरेजी ढँग की होने पर भी इसमें सस्कृत व्याकरण के सूत्रों का अनुकरण किया गया है। और दूसरी यह कि हिंदी के व्याकरण के साथ-साथ, नागरी अक्षरों में,उर्दू का भी व्याकरण दिया गया है। इस समय हिदी और उर्दू के स्वरूप के विषय में वाद-विवाद उपस्थित हो गया था, और राजा साहव दोन बोलियों को एक बनाने के प्रयत्न में अगुआ थे, इस