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के सभी धर्मों का ज्ञान होना कठिन है, परंतु जिस पदार्थ को वह जानता है उसके एक न एक धर्म का परिचय उसे अवश्य रहता है। कोई कोई धर्म एक से अधिक पदार्थों में भी पाये जाते हैं, जैसे,लंबाई, चौड़ाई, मुटाई, वजन, आकार, इत्यादि ।

पदार्थ का धर्म पदार्थ से अलग नहीं रह सकता; अर्थात् हम यह नहीं कह सकते कि यह घोड़ा है और वह उसका बल, या रूप है । तो भी हम अपनी कल्पना-शक्ति के द्वारा, परस्पर संबंध रखने वाली भावनाओं को अलग कर सकते हैं। हम घोड़े के और और धर्मों की भावना न करके केवल उसके बल की भावना मन में ला सकते हैं और आवश्यकता होने पर इस भावना को किसी दूसरे प्राणी ( जैसे हाथी ) के बल की भावना के साथ मिला सकते हैं।

जिस प्रकार जातिवाचक संज्ञाएँ अर्थान् होती हैं उसी प्रकार भाववाचक संज्ञाएँ भी अर्थवान् होती हैं, क्योंकि उनके समान इनसे भी धर्म का बोध होता है । व्यक्तिवाचक संज्ञा के समान भाववाचक संज्ञा से भी एक ही भाव का बोध होता है। “धर्म', 'गुण' और 'भाव' प्रायः पर्यायवाचक शब्द हैं। ‘भाव' शब्द का उपयोग ( व्याकरण मे ) नीचे लिखे अर्थों में होता है-

( क ) धर्म वा गुण के अर्थ में, जैसे, ठढाई, शीतलता, धीरज,' मिठास, बल, बुद्धि, क्रोध, इत्यादि ।

( ख ) अवस्था नींद, रोग, उजेला, अँधेरा, पीड़ा, दरिद्रता, सफाई, इत्यादि ।

(ग ) व्यापार–चढ़ाई, बहाव, दान, भजन, बोलचाल, दौड़, पढ़ना, इत्यादि ।

१०४-भाववाचक संज्ञाएँ बहुधा तीन प्रकार के शब्दों से बनाई जाती हैं-