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( क ) जातिवाचक संज्ञा से-जैसे, बुढ़ापा, लड़कपन, मित्रता, दासत्व, पंडिताई, राज्य, मौन, इत्यादि।

( ख ) विशेषण से-जैसे, गरमी, सरदी, कठोरता, मिठास, बड़प्पन,चतुराई, धैर्य, इत्यादि ।

(ग) क्रिया से-जैसे, घबराहट, सजावट, चढ़ाई, बहाव, मार, दौड़, चलन, इत्यादि ।

१०५--जब व्यक्तिवाचक संज्ञा का प्रयोग एक ही नाम के अनेक व्यक्तियों का बोध कराने के लिए अथवा किसी व्यक्ति का, असाधारण धर्म सूचित करने के लिए किया जाता है तब व्यक्ति- वाचक संज्ञा जातिवाचक हो जाती है; जैसे, “कहु रावण, रावण-जग केते' । (राम० )। “राम तीन हैं" । "यशोदा हमारे घर की। लक्ष्मी है”। “कलियुग के भीम” । इत्यादि।

पहले उदाहरण में पहला 'रावण' शब्द व्यक्तिवाचक संज्ञा हैं, और दूसरा 'रावण' शब्द जातिवाचक संज्ञा है। तीसरे उदाहरण में 'लक्ष्मी' संज्ञा जातिवाचक है, क्योंकि उससे विष्णु की स्त्री का बोध नहीं होता, किंतु लक्ष्मी के समान एक गुणवती स्त्री का बोध होता है। इसी प्रकार 'राम' और 'भीम' भी जातिवाचक संज्ञाएँ हैं। “गुप्तों की शक्ति क्षीण होने पर यह स्वतंत्र हो गया था " ।( सर०)--इस वाक्य में “गुप्तों” शब्द से अनेक व्यक्तियों का बोध होने पर भी वह नाम व्यक्तिवाचक संज्ञा है, क्योंकि इससे किसी व्यक्ति के विशेष धर्म का बोध नहीं होता, किंतु कुछ व्यक्तियों के एक विशेष समूह का बोध होता है।

१०६—कुछ जातिवाचक संज्ञाओं का प्रयोग व्यक्तिवाचक संज्ञाओं के समान होता है, जैसे, पुरी = जगन्नाथ, देवी दुर्गा,दाऊ= बलदेव, संवत्= विक्रमी संवत्, इत्यादि । इसी वर्ग में वे शब्द शामिल हैं जो मुख्य नामों के बदले उपनाम के रूप में आते