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हैं, जैसे, सितारे-हिंद = राजा शिवप्रसाद, भारतेंदु बाबू,हरिश्चंद्र, गुसाईंजी=गोस्वामी तुलसीदास, दक्षिण =दक्षिणी हिंदुस्थान, इत्यादि ।

बहुत सी योगरूढ़ संज्ञाएँ, जैसे, गणेश, हनुमान, हिमालय, गोपाल, इत्यादि मुल में जातिवाचक संज्ञाएँ हैं, परंतु अब इनका प्रयोग जातिवाचक अर्थ में प्रायः नहीं होता ।

१०७--कभी कभी भाववाचक संज्ञा का प्रयोग जातिवाचक संज्ञा के समान होता है, जैसे, "उसके आगे सब रूपवती स्त्रियाँ निरादर हैं” । (शकु० )। इस वाक्य में, “निरादर” शब्द से “निरादर-योग्य 'स्त्री' का बोध होता है। "ये सब कैसे अच्छे पहिरावे हैं”। ( स० ) । यहाँ “पहिरावे” का अर्थ बहुत करके “पहिनाने के वस्त्र" है ।

संज्ञा के स्थान में आनेवाले शब्द।

१०८-सर्वनाम का उपयोग संज्ञा के स्थान में होता है, जैसे,मैं ( सारथी ) रास खींचता हूँ । ( शकु० ) यह ( शकुंतला ) बन में पड़ी मिली थी। ( शकु० )।

१०९-विशेषण कभी कभी संज्ञा के स्थान में आता है, जैसे, "इसके बड़ों का यह संकल्प है" । ( शकु० )। "छोटेबड़े न है सकें। ( सत० )।

११०--कोई कोई क्रियाविशेषण संज्ञाओं के समान उपयोग में आते हैं, जैसे, ‘‘जिसका भीतर-बाहर एकसा हो” । ( सत्य० )।“हाँ मैं हाँ मिलाना”। “यहाँ की भूमि अच्छी है "। (भापा०)।

१११-- कभी कभी विस्मयादि-बोधक शब्द संज्ञा के समान प्रयुक्त होता है, जैसे, “वहाँ हाय-हाय मची है।” “उनकी बड़ी वाह-वाह हुई।”

११२–कोई भी शब्द वा अक्षर केवल उसी शब्द वा अक्षर के