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अर्थं में संज्ञा के-समान उपयोग में आ सकता है; जैसे “मैं" सर्व-नाम है। तुम्हारे लेख में कई बार "फिर" आया है। “का”मैं की मात्रा मिली है। "क्ष” संयुक्त अक्षर है। ।

[ टी०-संज्ञा के भेदों के विषय में हिंदी-वैयाकरणों का एक-मत नहीं है । अधिकांश हिंदी-व्याकरणों में संज्ञा के पाँच भेद माने गये हैं---जातिवाचक,व्यक्तिवाचक, गुणवाचक, भाववाचक और सर्वनाम। ये भेद कुछ तो संस्कृत के व्याकरण के अनुसार और कुछ अंगरेजी के व्याकरण के अनुसार हैं, तथा कुछ रूप के अनुसार और कुछ प्रयोग के अनुसार हैं । संस्कृत के'प्रातिपदिक' नामक शब्द-भेद में संज्ञा, गुणवाचक ( विशेषण ) और सर्वनाम का समावेश होता है; क्योंकि उस भाषा में इन तीनों शब्द-भेदों का रूपांतर प्रायः एक ही से प्रत्ययों के प्रयोग द्वारा होता है। कदाचित् इसी आधर पर हिंदी-वैयाकरण तीनों शब्द-भेदों को संज्ञा मानते हैं। दूसरा कारण यह जान पड़ता है कि संज्ञा, सर्वनाम और विशेषण, इन तीनों ही से वस्तुओं को प्रत्यक्ष वा परोक्ष बोध होता है। सर्वनाम और विशेषण को संज्ञा के अंतर्गत मानना चाहिये अथवा उससे भिन्न अलग अलग वर्गों में रखना चाहिये, इस विषय का विवेचन आगे चलकर सर्वनाम और विशेषण-संबंधी अध्यायों में किया जायगा । यहाँ केवल संज्ञा के उप-भेदों पर विचार किया जाता है।

संज्ञा के जातिवाचक, व्यक्तिवाचक और भाववाचक उपभेद संस्कृत व्याकरण में नहीं हैं। ये उपभेद अंग्रेजी-व्याकरण में, दो अलग अलग अधारों पर, अर्थ के अनुसार किये गये हैं। पहले आधार में इस बात का विचार किया गया है कि संपूर्ण सज्ञाओं से था तो वस्तुओं का बोध होता है या धर्मों का, और इस दृष्टि से सज्ञाओं के दो भेद माने गये हैं---( १ ) पदार्थवाचक, ( २ ) भाववाचक। दूसरे आधार में केवल पदार्थवाचक संज्ञाओं के अर्थ का विचार किया गया है कि उनसे या तो व्यक्ति ( अकेले पदार्थ ) का बोध होता है या जाति ( अनेक पदार्थों ) का, और इस दृष्टि में पदार्थवाचक संज्ञाओं के दो भेद किये गये हैं--(१) व्यतिवाचक,(२) जातिवाचक । दोनों आधारों को मिलाकर संज्ञा के तीन भेद होते हैं--( 1 ) व्यक्तिवाचक, (२) जातिवाचक और ( ३ ) भाववाचक ।(सर्वनाम और विशेषण को छोडकर ) संज्ञाओं के ये तीन भेद हिंदी के कई व्याकरणों में पाये जाते हैं; परंतु उनमें इन वर्गीकरण के किया भी अधार