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छोड़कर और सब। सृष्टि के इन तीनों रूपों को व्याकरण में पुरुष कहते हैं और ये क्रमशः उत्तम, मध्यम और अन्यपुरुष कहाते हैं। इन तीन पुरुषों में उप्तम और मध्यमपुरुष ही प्रधान हैं, क्योंकि इनका अर्थ निश्चित रहता है। अन्यपुरुष का अर्थ अनिश्चित होने के कारण उसमें बाकी की सृष्टि के अर्थ का समावेश होता है। उत्तमपुरुष "मैं" और मध्यमपुरुष "तू" को छोड़कर शेष सर्वनाम और सब संज्ञाएँ अन्यपुरुष में आती हैं। इस अनिश्चित वस्तु-समूह को संक्षेप में व्यक्त करने के लिए 'वह' सर्वनाम को अन्यपुरुष के उदाहरण के लिए ले लेते हैं।

सर्वनामों के तीनों पुरुषों के उदाहरण ये हैं—उत्तमपुरुष-मैं, मध्यमपुरुष-तू, आप (आदरसूचक), अन्यपुरुष—यह, वह, आप (आदरसूचक), सो, जो, कौन, क्या, कोई, कुछ। (सब संज्ञाएँ अन्यपुरुष हैं।) सर्व-पुरुष-वाचक—आप (निजवाचक)।

[सूचना—(१) भाषा-भास्कर और दूसरे, हिंदी व्याकरणों में "आप" शब्द "आदर-सूचक" नाम से एक अलग वर्ग में गिना गया है। परंतु व्युत्पत्ति के अनुसार, सं°—आत्मन्, प्रा°—अप्प) "आप", यथार्थ में निजवाचक है, और आदर-सूचकत्व उसका एक विशेष प्रयोग है। आदरसूचक "आप" मध्यम और अन्यपुरुष सर्वनामों के लिए आता है। इसलिए उसकी गिनती पुरुषवाचक सर्वनामों में ही होनी चाहिए। निजवाचक "आप" अलग अलग स्थानों में अलग अलग पुरुषों के बदले आ सकता है, इसलिए ऊपर सर्वनामों के वर्गीकरण में यही निजवाचक "आप" "सर्व-पुरुप-वाचक" कहा गया है।

(२) "मैं", "तू" और "आप" (म° पु°) को छोड़कर सर्वनामों के जो और भेद हैं वे सब अन्यपुरुष सर्वनाम के ही भेद हैं। मैं, तू और आप (म° पु°) सर्वनामों के दूसरे भेदों में नहीं आते, इसलिए येही तीन सर्वनाम विशेषकर पुरुषवाचक हैं। वैसे तो प्रायः सभी सर्वनाम पुरुषवाचक कहे जा सकते हैं, क्योंकि उनसे पुरुषों का बोध होता है; परंतु दूसरे सर्वनामों में उत्तम और मध्यमपुरुष नहीं होते, इसलिए उत्तम और मध्यम पुरुषही प्रधान पुरुष वाचक हैं और बाकी सब सर्वनाम अप्रधान पुरुषवाचक हैं। सर्वनामों के अर्थ