पृष्ठ:हिंदी व्याकरण.pdf/११५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(९४)

धनुष की टंकार ही से मिट जाते हैं।” (शकु०)। आपने बड़े प्यार से कहा कि आ बच्चे, पहले तू ही पानी पी ले। उसने तुम्हें विदेशी जान तुम्हारे हाथ से जल न पिया।” ( तथा ) ।

(उ) आदर की पराकाष्ठा सूचित करने के लिए वक्ता या लेखक अपने लिए दास, सेवक, फिदवी ( कचहरी की भाषा में ), कमतरीन, ( उर्दू ), आदि शब्दों में से किसी एक का प्रयोग करता है; जैसे, "सि०–कहिए यह दास आपके कौन काम आ सकता है ?” (मुद्रा०)। “हुजूर से फिदवी की यह अर्ज है।”

(ऊ) मध्यमपुरुष “आप” के साथ अन्यपुरुष बहुवचन क्रिया आती है; परंतु कहीं कहीं परिचय, वराबरी अथवा लघुता के विचार से मध्यमपुरुष बहुवचन क्रिया का भी प्रयोग होता है; जैसे, "ह०-आप मोल लोगे ?" ( सत्य० )। ऐसे समय में आप साथ न दोगे तो और कौन देगा ?” ( परी० )। "दो० ब्राह्मण - आप अगलों की रीति पर चलते हो ।” ( शकु० ) । यह प्रयोग शिष्ट नहीं है।

(ऋ) अन्यपुरुष मे आदर के लिए "वै” के बदले कभी कभी “आप आता है। अन्यपुरुष “आप” के साथ क्रिया सदा अन्यपुरुष बहुवचन में रहती है। उदा०-"श्रीमान् राजा कीर्तिशाह बहादुर का देहांत हो गया। अभी आपकी उम्र केवल उंतालिस वर्ष की थी ।” ( सर० )।

१२४–अप्रधान पुरुषवाचक सर्वनामों के नीचे लिखे पॉच भेद हैं-

( १ ) निजवाचक-आप ।

(२) निश्चयवाचक-यह, वह, सो ।

(३) अनिश्चयवाचक--कोई, कुछ।

(४) संबंधवाचक-जो ।

(५) प्रश्नवाचक-कौन, क्या ।