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१२५-आप (निजवाचक )। प्रयोग में निजवाचक “आप” पुरुषवाचक, (आदरसूचक ) "आप" से भिन्न है। पुरुषवाचक “आप” एक का वाचक होकर भी नित्य बहुवचन में आता है; पर निजवाचक “आप” एकही रूप से दोनों वचनों में आता है। पुरुषवाचक “आप” केवल मध्यम और अन्यपुरुष में आता है, परंतु निजवाचक “आप” का प्रयोग तीनों पुरुषों में होता है । आदरसूचक “आप” वाक्य में अकेला अता है; किंतु निजवाचक "अप" दूसरे सर्वनामों के संबंध से आता है। "आप" के दोनों प्रयोगों में रूपातर का भी भेद है । ( अं०-३२४) ।

निजवाचक “आप” का प्रयोग नीचे लिखे अर्थों में होता है-

(अ) किसी संज्ञा या सर्वनाम के अवधारण के लिए, जैसे "मैं आप वहीं से आया हूँ ।” ( परी०)। “बनते कभी हम आप योगी ।" । ( भारत० )।

(आ) दूसरे व्यक्ति के निराकरण के लिए, जैसे,—“श्रीकृष्णजी ने ब्राह्मण को बिदा किया और आप चलने का विचार करने लगे।” ( प्रेम० ) । “वह अपने को सुधार रहा है।”

(इ) अवधारण के अर्थ में “आप” के साथ कभी कभी "ही" जोड़ देते हैं, जैसे, “नटी--मैं तो आपही आती थी।” ( सत्य० ) । “देत चाप आपहि चढ़ि गयऊ।” ( राम० )। “वह अपने पात्र के सपूर्ण गुण अपने ही में भरे हुए अनुमान करने लगता है ।" ( सर० )।

(ई) कभी-कभी "आप" के साथ उसका रूप "अपना" जोड़ देते हैं, जैसे, “किसी दिन मैं न आप अपने को भूल जाऊँ ।" (शकु० ) । “क्या वह अपने आप झुका है?" ( तथा ) “राजपूत वीर अपने आपको भूल गये ।”