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(उ) “आप” शब्द कभी कभी वाक्य में अकेला आता है और अन्य-पुरुष का बोधक होता है; जैसे “आप कुछ उपार्जन किया ही नहीं, जो था वह नाश हो गया।” ( सत्य० ) । “होम करन लागे मुनि झारी । आप रहे मख की रखवारी ।।” (राम०)।

(ऊ) सर्व-साधारण के अर्थ में भी “आप” आता है; जैसे आप भला तो जरा भला ।" ( कहा० )। अपने से बड़े का आदर करना उचित है !"

(ऋ) “आप” के बदले वो उसके साथ बहुधा "खुद" (उर्दू), “स्वयं” वा “स्वतः” ( संस्कृत ) का प्रयोग होता है। स्वयं स्वतः और खुद हिंदी मे अव्यय हैं और इनका प्रयोग बहुधा क्रियाविशेषण के समान होता है। आदरसूचक ‘आप’ के साथ द्विरुक्ति के निवारण के लिए इनमें से किसी एक का प्रयोग करना आवश्यक है ; जैसे, "आप खुद यह बात समझ सकते हैं।” “हम आज अपने आपको भी हैं स्वयं भूले हुए।" ( भारत० ) । “सुल्तान स्वतः वहाँ गये थे।” ( हित० ) । "हर आदमी खुद अपने ही को प्रचलित रीति-रस्मों का कारण बतलावे ।” ( स्वा० )।

(ए) कभी कभी “आप” के साथ निज (विशेषण) संज्ञा के समान आता है; पर इसका प्रयोग केवल संबंध-कारक में होता है । जैसे, “हम तुम्हें एक-अपने निज के काम में भेजा चाहते हैं।” ( मुद्रा० )।

(ऐ) “आप” शब्द का रूप “आपस”, “परस्पर के अर्थ में आता है। इसका प्रयोग केवल संबंध और अधिकरण-कारकों में होता है ; जैसे, “एक दूसरे की राय आपस में नहीं मिलती ।" ( स्वा० )। आपस की फूट बुरी होती है।” (ओ) “आपही”, “अपने आप”, “आपसे आप” और “आपही