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है। इस पुस्तक का प्रकाशन प्रारभ हेाने के पश्चत् पं०अंबिकाप्रसाद वाजपेयी की "हिंदी-कौमुदो" प्रकाशित हुई; इसलिए अन्यान्य पुस्तकों के समान इस पुस्तक के किसी विवेचन का विचार हमारे ग्रंथ में न हो सका। “हिदी-कौमुदी" अन्यान्य सभी व्याकरणो की अपेक्षा अधिक व्यापक, प्रामाणिक और शुद्व है । कैलाग, प्रोब्ज, पिकाट दि विदेशी लेखकों ने हिंदो-व्याकरण की उत्तम पुस्तकें, अँगरेजों के लाभार्थ, अँगरेजी में लिखी हैं, पर इनके ग्रंथो में किये गये विवेचनो की परीक्षा हमने अपने ग्रथ में नहीं की,क्योंकि भाषा की शुद्धता की दृष्टि से विदेशी लेखक पूर्णतया प्रामा-णिक नहीं माने जा सकते ।

    ऊपर, हिंदी-व्याकरण का, गत प्रायः सौर वर्षों का, संक्षिप्त इति-हास दिया गया है। इससे जाना जाता है कि हिदी-भाषा के जितने व्याकरण आज तक हिंदो से लिखे गये हैं वे विशेष-कर पाठशालाओं के छाटे-छोटे विद्यार्थियों के लिए निम्मित हुए हैं। उनमें बहुधा साधारण (स्थूल) नियम ही पाये जाते हैं जिनसे भाषा की व्यापकता पर पूरा प्रकाश नहीं पड़ सकता। शिक्षित समाज ने उनमें से किसी भी व्याकरण को अभी तक विशेष रूप से प्रामाणिक नहीं माना है। हिदी-व्याकरण के इतिहास में एक विशेषता यह भी है कि अन्य-भाषा-भाषी भारतीयो ने भी इस भाषा का व्याकरण लिखने का उद्योग किया है जिससे हमारी भाषा की व्यापकता, इसके प्रामाणिक व्याकरण की आवश्यकता और साथ ही हिदी-भाषी वैयाकरणों का अभाव अथवा उनकी उदासीनता ध्वनित होती है। आजकल हिंदो-भाषा के लिए यह एक शुभ चिह्न है कि कुछ दिनों से हिंदी-भाषी लेखको ( विशेष-

कर शिक्षको) का ध्यान इस विषय की ओर आकृष्ट हो रहा है ।

    हिंदी में अनेक उपभाषाओं के होने तथा उर्दू के साथ अनेक वर्षों से इसका संपर्क रहने के कारण हमारी भाषा की रचना-शैली