पृष्ठ:हिंदी व्याकरण.pdf/१२३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(१०२)

(ऋ)आदर और वहुत्व के लिए भी "काई" आता है। पिछले अर्थ मे वहुधा "कोई" की द्विरुक्ति होती है। जैसे, “मेरे घर कोई आये हैं ।" “केाई केाई पोप के अनुयायियों ही को नही देख सकते ।" ( स्वा० ) । “किसी किसी की राय में विदेशी शब्दो का उपयोग मूर्खता है ।" ( सर० ) ।

( ए )अवधारण के लिए "कोई कोई" के बीच में "न" लगा दिया जाता है; जैसे, “यह काम कोई न कोई अवश्य करेगा ।"

( ऐ )कोई कोई । इन दुहरे शब्दो से विचित्रता सूचित होती है, जैसे, “कोई कहती थी यह उचक्का है, कोई कहती थी एक पक्का है ।" ( गुटका० ) । इसी अर्थ में "एक एक" आता हैं, जैसे--

"इक प्रविशहि इक निर्गमहि, भीर भूप दरबार ।"-(राम०)।

(ओ)संख्या-वाचक विशेषण के पहले "कोई' परिमाम-वाचक क्रियाविशेषण के समान आता है, और उसका अर्थ "लगभग" होता है ; जैसे, “इसमे कोई ४०० पृष्ठ हैं ।" ( सर० ) ।

१३३-कुछ--( एकवचन ) । दूसरे सर्वनामो के समान "कुछ" का रूपांतर नहीं होता। इसका प्रयोग बहुधा विशेषण के समान होता है । जव इसका प्रयोग संज्ञा के बदले में होता है तब यह नीचे लिखे अर्थों में आता है--

(अ )किसी अज्ञात पदार्थ वा धर्म के लिए: जैसे “धी में कुछ मिलि है।" "मेरे मन में आती हैं कि इससे कुछ पृछूँ ।" ( शकु० )।

(आ) छोटे जंतु वा पदार्थ के लिए;"जैसे पानी में कुछ है ।"

( इ )कभी कभी कुछ परिमाण-वाचक क्रिया-विशेषण के समान आता है। इस अर्थ में कभी कभी उसकी द्रिरूति भी होती है। उदा०--- "तेरे शरीर का ताप कुछ घटा कि नहीं ?"