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नहीं किया था ऐसे राजा रघु ने यह उत्तर दिया ।" ( रघु० )। “प्रभु जो दीन्ह सो वर में पावा ।"

( उ ) “जो" कभी कभी एक वाक्य के बदले ( वहुधा उसके पीछे ) आता है, जैसे, “आ, वेग वेग चली आ, जिससे सब एक संग क्षेम-कुशल से कुटी में पहुँचे।” ( शकु० )। “लोहे के बदले उसमे सोना काम में आवे जिसमें भगवान भी उसे देखकर प्रसन्न हो जावें ।" ( गुटका० ) ।

( ऋ ) आदर और बहुत्व के लिए भी "जो" आता है; जैसे, "यह चारो कवित्त श्री बाबू गोपालचंद्र के बनाए हैं जो कविता में अपना नाम गिरिधरदास रखते थे ।" ( सत्य० ) । “यहाँ तो वे ही बडे हैं जो दूसरे को दोष लगाना पढे हैं।" ( शकु० )।

( ए ) "जो" के साथ कभी कभी फारसी का संबंध-वाचक सर्व-नाम “कि" आता है ( पर अब उसका प्रचार घट रहा है )। जैसे, “किसी" समय राजा हरिश्चंद्र बडा दानी हो गया है कि जिसकी कीर्ति संसार में अब तक छाय रही है ।" ( प्रेम० )। “कौन कौन से समय के फेरफार इन्हें झेलने पड़े कि जिनसे ये कुछ के कुछ हो गए !" ( इति० )।

( ऐ ) कभी कभी संबंध-वाचक वा नित्य-संबंधी सर्वनाम का लोप होता है। जैसे, “हुआ सो हुआ ।" ( शकु० ) । "जो पानी पीता है आपको असीस देता है ।" ( गुटका० )। कभी कभी दूसरे वाक्य ही का लोप होता है ; जैसे "जो आज्ञा ।" “जो हो ।"

( ओ ) समूह के अर्थ में संबंध-वाचक और निन्य-संबंधो सव नामों की बहुधा द्विरुक्ति होती है; जैसे' त्यो हरिचंद ज