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जो जो कह्यो सो किया चुप है करि कोटि उपाई । (सुंदरी०) । “कन्या के विवाह मे हमे जो जो वस्तु चाहिए सो सो सब इकट्ठी करो ।" ( प्रेम० ) ।

( औ ) “जो" कभी कभी समुच्चय-बोधक के समान आता है, और उसका अर्थ “यदि" वा "कि" होता है, जैसे, "क्या हुआ जो अब की लड़ाई मे हारे ।" ( प्रेम० )। “हर किसी की सामर्थ नहीं जो उसका साम्हना करे।" ( तथा )।

"जो सच पूछो तो इतनी भी बहुत हुई।" ( गुटका० ) ।

( क ) “जो" के साथ अनिश्चयवाचक सर्वनाम भी जोडे जाते हैं । “कोई" और "कुछ" के अर्थों मे जो अतर है वही "जो केई" और "जो कुछ" के अर्थों में भी है, जैसे “जो केाई नल को घर में घुसने देगा, जान से हाथ धोएगा ।" (गुटका०) । “महाराज जो कुछ कहो बहुत समझ बूझ- कर कहिये ।" ( शकु० )।

१३५–प्रश्नन करने के लिए जिन सर्वनाम का उपयोग होता हैं। उन्हें प्रश्नवाचक सर्वनाम कहते हैं । ये दो हैं--कौन और क्या ।

१३६–“कौन" और "क्या" के प्रयोगो मे साधारण अंतर वही है जेा "कोई" और “कुछ" के प्रयोगों में है। ( अ०-१३२- १३३ )। “कौन" प्राणियों के लिए और विशेषकर मनुष्यों के लिए और "क्या" क्षुद्र प्राणी, पदार्थ वा धर्म के लिए आता है, जैसे, “हे महाराज, आप कौन है ?" (गुटका०)। “यह आशीर्वाद किसने दिया ।" (शकु०) । “तुम क्या कर सकते हो ?" “क्या समझते हो ?" ( सत्य० )। "क्या है ?" "क्या हुआ ?"

१३७----"कौन" का प्रयोग नीचे लिखे अर्थों में होता है-

( अ ) निर्धारण के अर्थ में "कौन" प्राणी, पदार्थ और धर्म, तीनों के लिए आता है, जैसे-