पृष्ठ:हिंदी व्याकरण.pdf/१३०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(१०९)

( अ ) किसी वस्तु के लिए तिरस्कार वा अनादर सूचित करने मे, जैसे, “वह आदमी क्या राक्षस है " “क्या हुआ। जो अब की लड़ाई में हारे ।"( प्रेम० ) । “भला हम दास लेके क्या करेगे ?" ( सत्य॰) । “धन तो क्या इस काम में तन भी लगाना चाहिये ।" "क्या जाने ।"

( इ ) आश्चर्य में, "जैसे, “ऊषा क्या देखती है कि चहुँ आर बिजली चमकने लगी ।" ( प्रेम०)। “क्या हुआ ।" “वाह ! क्या कहना है ।"

इसी अर्थ में "क्या" वहुधा क्रियाविशेषण के समान आता है, जैसे, "घोड़े दौडे क्या हैं, उड आये हैं ।" (शकु०) । “क्या अच्छी बात है ।"

( ई ) धमकी मे, जैसे, “तुम यह क्या करते हो।" “तुम यहाँ क्या बैठे हो ।"

( उ ) किसी वस्तु की दशा बताने में, जैसे, “हम कौन थे क्या हो गये हैं और क्या होगे अभी ।" ( भारत० ) ।

( ऊ ) कभी कभी “क्या" का प्रयोग विस्मयादि-बोधक के समान होता है--

( १ ) प्रश्न करने के लिए, जैसे, “क्या गाडी चली गई ?"

( २ ) आश्चर्य सूचित करने के लिए, जैसे, “क्या तुमको चिह्न दिखाई नहीं देते ।" ( शकु० ) ।

( ऋ ) अशक्यता के अर्थ में भी "क्या" क्रियाविशेषण होती है, जैसे, “हिंसक जीव मुझे क्या मारेंगे।" (रघु०)। “उसके मारने से परलोक क्या बिगडेगा ।"( गुटका० )।

( ऋ ) निश्चय कराने में भी "क्या" क्रियाविशेषण के समान आता है, जैसे, “सरोजिनी-माँ । मैं यह क्या बैठी हूँ ।"