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"क्या" और “सो” का नाम तक नहीं है। बिना किसी वर्गीकरण के (चाहे वह पूर्णतया न्याय-सम्मत न हो ) केवल वर्णमाला के क्रम से १५० अव्ययों की सूची दे देने से उनका स्मरण कैसे रह सकता है और उनके प्रयोग का क्या ज्ञान हो सकता है? यदि किसी शब्द को केवल “अव्यय" कहने से काम चल सकता है तो फिर “विकारी" शब्दों के जो भेद संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया लेखक ने माने है, उन सबकी भी क्या आवश्यकता है ?

"हिदी-बाल-बोध व्याकरण" में सर्वनामों की संख्या सबसे अधिक है। लेखक ने "कोई” और “कुछ" के साथ "सब” को अनिश्चय-वाचक सर्वनाम माना है; और "एक”, “दूसर", "दोनो", "एक दूसर'श" "कई एक" आदि के निश्चयवाचक सर्वनामों में लिखा है। ये सब शब्द यथार्थ में विशेषण हैं, क्योंकि इनके रूप और प्रयेाग विशेषणोंं के समान होते है । "एक लड़का”, “दस लडके" और “सब लड़के", इन वाक्यांशों में संज्ञा के अर्थ के संबंध से "एक", "दस” और “सब" का प्रयोग व्याकरण में एक ही सा है—अर्थात् तीनों शब्द “लडका" संज्ञा की व्याप्ति मर्यादित करते हैं। इसलिए यदि ‘‘दस विशेषण है ते "सब" भी विशेषण है। हाँ, कभी कभी विशेष्य के लोप होने पर ऊपर लिखे शब्दों का प्रयोग सज्ञाओं के समान होता है, पर प्रयेाग की भिन्नता और भी कई शब्द-भेदों में पाई जाती है। हमने इन सब शब्दों को विशेपशषण मानकर एक अलग ही वर्ग में रक्खा है। जिन शब्दों के बाल-बोध-व्याकरण के कर्ता में निश्चय-वाचक सर्वनाम माना है वे सर्वनाम माने जाने पर भी निश्चयवाचक नहीं है । उदाहरण के लिए "एक" और दूसरा शब्द लीजिये । इनका प्रयोग "कोई" के समान होता है जो अनिश्चय-वाचक है । पर जब "एक" या "दूसरा” केवल संख्या वा क्रम का वोधक होता है तब वह अवश्य निश्चय-वाचक विशेषण ( वा सर्वनाम ) हेाता है; परंतु समालोचित पुस्तक में इन सर्वनामो के प्रयेागों के उदाहरण नहीं है, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि लेखक ने किस अर्थ में इन्हें निश्चय-वाचकं माना है।

इन उदाहरणो से स्पष्ट है कि उपर कही हुई तीन पुस्तकों में जो कई शब्द सर्वनामों की सूची में दिये गये हैं अथवा छोड दिये गये हैं इनके लिए कोई प्रबल कारण नहीं है । अत्बब सर्वनामों के वर्गीकरण का कुछ विचार करना चाहिए ।

"भाषा-प्रभाकर" और हिन्दी-बाल-बोध व्याकरण" में सर्वनामों के