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१४६-विशेषण के योग से जिस सज्ञा की व्याप्ति मर्यादित । होती है उस सज्ञा को विशेष्य कहते हैं; जैसे, "ठंढी हवा चली" -इस वाक्य में ‘ठढी’ विशेषण और 'हवा' विशेष्य है ।

(क) विशेष्य के साथ विशेषण का प्रयोग दो प्रकार से होता है- (१) संज्ञा के साथ, (२) क्रिया के साथ । पहले प्रयोग को विशेष्य-विशेषण और दूसरे को विधेय-विशेषण कहते हैं। विशेष्य- विशेषण विशेष्य के साथ और विधेय-विशेषण क्रिया के साथ आता है, जैसे, “ऐसी सुडौल चीज कहीं नहीं बन सकती ।” (परी०) । “हमें तो संसार सूना देख पड़ता है ।" ( सत्य० ) । “यह बात सच है ।"

(ख) विधेय-विशेषण समानाधिकरण होता है, जैसे, “यह ब्राह्मण चपल है । इस वाक्य में 'यह' शब्द के कारण “ब्राह्मण" सज्ञा की व्यापकता घटती है, परतु “चपल" शब्द उस व्यापकता को और कम नहीं करता। उससे ब्राह्मण के विषय में केवल एक नई बात–चपलता---जानी जाती है ।

१४७--विशेषण के मुख्य तीन भेद किये जाते हैं—(१) सार्व- नामिक विशेषण, (२) गुणवाचक विशेषण और (३) संख्यावाचक विशेपण ।

[ सूचना--यह वर्गीकरण न्याय-दृष्टि से नहीं, किंतु उपयोगिता की दृष्टि से किया गया है। सार्वनामिक विशेषण सर्वनामों से बने हैं, इसलिए दूसरा विशेषणों से उनका एक अलग वर्ग मानना उचित है फिर, व्यवहार में गुण और संख्या भिन्न भिन्न धर्म हैं, इसलिए इन दोनों के विचार से विशेषण के और दो भेद--गुणवाचक और संख्यावाचक किए गये हैं। ]

( १ ) सार्वनार्मिक विशेषण ।

१४८--पुरुषवाचक और निजवाचक सर्वनामों को छोड़कर शेष सर्वनामों का प्रयोग विशेषण के समान होता है । जब ये शब्द