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हिदी-भाप के आरभ-काल में, समय समय पर ( प्रायः एक एक शताब्दि मे ) बदलनेवाले रूपों और प्रयोगों के प्रामाणिक उदाहरण,जहाँ तक हमें पता लगा है, उपलब्ध नहीं हैं। फिर इस विषय के योग्य प्रतिपादन के लिए शब्द-शास्त्र की विशेष योग्यता की भी आवश्यकता है। ऐसी अवस्था में हमने “हिंदी-व्याकरण" में हिंदी-भाषा के इतिहास के बदले हिदी-साहित्य का संक्षिप्त इतिहास देने का प्रयत्न किया है। यथार्थ में यह बात अनुचित और अनावश्यक प्रतीत होती है कि भाषा के संपूर्ण रूपों और प्रयोगो की नामावली के स्थान में कवियो और लेखकों तथा उनके ग्रंथों की शुष्क नामावली दी जाय । हमने यह विश्व केवल इसीलिए लिखा है कि पाठको को , प्रस्तावना के रूप में, भाषा की महत्ता को थोड़ा-बहुत अनुमान हो जाय ।।

    हिदी के व्याकरण का सर्व-सम्मत होना परम आवश्यक हैं

इस विचार से काशी की सभा ने इस पुस्तक को दुहरत सिद्ध एक सशोधन-समिति निर्वाचित की थी। इस दुहराने के चिन्ह छुट्टियों में अपनी बैठक की, और आवश्यक परिवर्तन के साथ, इस व्याकरण के सर्व-सन्र्दभ कर लिया। यह बात लेखक, हिंदी-भाषा और हिन्दी लेखकों लिए अत्यंत लाभदायक और महत्त्वपूर्ण हैं निन्न-लिखित सदस्यों ने बैठक में भाग लेकर इन्दनदि कार्यों में अमूल्य सहायता दी है--

     पंडित महावीरप्रसाद द्विवेदी ।
     साहित्याचार्य पंडित रामावदः  ।
     पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी, ।
     रा० सी० पंडित लज्जा ।
     पंडित रामनारायण छिःः ।