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( अ ) “इतने में" क्रिया-विशेषण--वाक्यांश है; और उसका अर्थ "इस समय मे" होता है, जैसे, “इतने में ऐसा हुआ ।"

( आ ) "वैसे ही" का अर्थ "स्वभाव से" या "संतमेत" होता है; जैसे, “सूर्यकांति मणि का स्वभाव है कि वैसे तो छूने में ठंढी लगती है ।" (शकु०) । “यह किताब मुझे वैसे ही मिली।"

१५६--"निज" और “पराया💐" भी सार्वनामिक विशेषण हैं; क्योंकि इनका भी प्रयोग बहुधा विशेषण के समान होता है, ये दोनों अर्थ में एक दूसरे के उलटे हैं । “निज" का अर्थ "अपना" और "पराया" का अर्थ “दूसरे का" है, जैसे, निज देश, निज भाषा, निज गृह ( राम० ), पराया घर, पराया माल, इत्यादि।

( २ ) गुणवाचक विशेषण ।

१५७---गुणवाचक विशेषणों की संख्या और सब विशेषणों की अपेक्षा अधिक रहती है । इनके कुछ मुख्य अर्थ नीचे दिये जाते हैं-

काल-–नया, पुराना, ताजा, भूत, वर्तमान, भविष्य,

प्राचीन, अगला, पिछला, मौसमी, आगामी, टिकाऊ, इत्यादि ।

स्थान-लंबा, चैड़ा, ऊँचा, नीचा, गहरा, सीधा,सकरा, तिरछा, भीतरी, बाहरी, ऊजड़, स्थानीय, इत्यादि ।

आकार-गोल, चौकोर, सुडोल'समान, पोला, सुंदर, नुकीला, इत्यादि ।

रंग--लाल, पीला, नीला, हरा, सफेद, काला, बैंगनी, सुनहरी, चमकीला, धुंधला, फीका, इत्यादि ।

दशा-दुबला, पतला, मोटा, भारी, पिघला, गाढ़ा, गीला,सूखा, घना, गरीब, उद्यमी, पालतू, रोगी, इत्यादि ।

गुण-भला, बुरा, उचित, अनुचित, सच, झूठ, पापी, दानी, न्यायी, दुष्ट, सीधा, शांत, इत्यादि ।