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बाबू जगन्नाथदास ( रत्नाकर ), बी० ए० । बाबू श्यामसुंदरदास, बी० ए० । पंडित रामचंद्र शुक्ल । इन सब सज्जनो के प्रति हम अपनी हार्दिक कृतज्ञता प्रकट करते हैं। पं० महावीरप्रसाद द्विवेदी के हम विशेषतया कृतज्ञ हैं, क्योंकि अपने हस्त-लिखित प्रति का अधिकांश भाग पढ़कर अनेक उपयोगी सूचनाएँ देने की कृपा और परिश्रम किया है। खेद है कि पं० गोविंद-नारायणजी मिश्र तथा पं० अंबिकाप्रसादजी वाजपेयी समयाभाव के कारण समिति की बैठक में येाग न दे सके जिससे हमे आप लोगों की विद्वत्ता और सम्मति का लाभ प्राप्त न हुआ| व्याकरण-संशो-धन-समिति की सस्मति अन्यत्र दी गई है । अंत में, हम विज्ञ पाठको से नम्र निवेदन करते हैं कि आप लोग कृपा कर हमें इस पुस्तक के दाषो की सूचना अवश्य देवे । यदि ईश्वरेच्छा से पुस्तक को द्वितीयावृत्ति का सौभाग्य प्राप्त होगा तो उसमे इन दोषो के दूर करने का पूर्ण प्रयत्न किया जायेगा। तब तक पाठक-गय कृपा कर “हिदी-व्याकरण" के सार के उसी प्रकार ग्रहण करे जिस प्रकार--- संत-हंस गुण गहहि पय, परिहरि वारि-विकार ।

    गढ़ा-फारक,
     जबलपुर;
    वसंत-पंचमी,
    सं० १८७७ ।
                             निवेदक---
                             कामता प्रसाद गुरु