तीन = तिगुना सात = सातगुना
चार = चौगुना। आठ = आठगुना
पाँच = पचगुना नौ = नौगुना
( आ ) परत व प्रकार के अर्थ में ‘हरा' जोड़ा जाता है, जैसे, इकहरा, दुहरा, तिहरा, चैहरा, इत्यादि ।
( इ ) कभी कभी संस्कृत के प्रवृत्ति-वाचक विशेषणों का भी उपयोग हेाता है; जैसे, द्विगुण, त्रिगुण, चतुर्गुण, इत्यादि ।
( ई ) पहाड़ों में आवृत्ति-वाचक श्रीर अपूर्ण-संख्या-बोधक विशेषणों के रूपों में कुछ अंतर हो जाता है, जैसे,
दूना--दूने, दूनी । सवा-सवाम ।
तिगुना--तिया, तिरिक डेढ़-डेवढे ।
चौगुना-चौक । अढाई - अढाम ।
पॅचगुना--पंचे ।
छगुना-छक ।
सतगुना–सत्ते ।
अठगुना-अट्टे।
नौगुना--नवां, नवें ।
दसगुना-दहाम ।
[सूचना-इन शब्दों का उच्चारण भिन्न भिन्न प्रदेशों में भिन्न मिन्न प्रकार का होता है ।]
१८२–समुदाय-वाचक विशेषणों से किसी पूर्णाक-बोधक संख्या के समुदाय का बोध होता है; जैसे, दोनों हाथ, चारों पाँव, आठों लड़के, चालीसों चोर, इत्यादि ।
( अ ) पूर्णांक-बोधक विशेषणों के आगे ‘ओ', जोडने से समुदाय-वाचक विशेषण बनते हैं, जैसे, चार-चारों, दस-दसों, सोलह-सोलहों, इत्यादि । छः का रूप ‘छओ' होता है।
(आ) “दो" से "दोनो" बनता है । ‘एक' का समुदाय-वाचक रूप “अकेला" है। "दोनों" का प्रयोग बहुधा सर्वनाम के