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समान होता है; जैसे, “दुविधा में दोनों गये, माया मिली न राम ।" “अकेला" कभी कभी क्रिया-विशेषण के समान आता है; जैसे, “विपिन अकेलिफिरहु केहि हेतू (राम०) [ सूचना--"ओं" प्रत्यय अनिश्चय में भी आता है (अ०-१७६-ई)।]

( इ ) कभी कभी समुदायवाचक विशेषण की द्विरुक्ति भी होती है, जैसे,“पाँचों के पाँचों आदमी चले गये ।" “दोनों के दोनों लड़के मूर्ख निकले ।”

( ई ) समुदाय के अर्थ में कुछ संज्ञाएँ भी आती हैं; जैसे,

जोड़ा, जोड़ी = दो । गंडा = चार या पाँच

दहाई = दस । गाही = पाँच

कोड़ी, बीसा, बीसी = बीस । चालीसा= चालीस ।

बत्तीसी = बत्तीस । सैकड़ा= सो ।

छका = छः । दर्जन (अं०) = बारह

(उ) युग्म ( दो ), पंचक (पाँच), अष्टक ( आठ ) आदि संस्कृत समुदाय-वाचक संज्ञाएँ भी प्रचार में हैं ।

१८३---प्रत्येक-बोधक विशेषण से कई वस्तुओं में से प्रत्येक का बोध होता है; जैसे “हर घड़ी," “हर एक आदमी”, “प्रति-जन्म”, "प्रत्येक बालक", "हर आठवे दिन", इत्यादि । “हर" के बदले कभी कभी उर्दू “फी" आता है, जैसे, कीमत की जिल्द )।

( अ ) गणना-वाचक विशेषणों की द्विरुक्ति से भी यही अर्थ निकलता हैं, जैसे,"एक-एक लड़के को अधा-अधा फल मिला ।" “दवा दो-दो घंटे के बाद दी जावे ।

( आ ) अपूर्णांक-बोधक विशेषणों में मुख्य शब्द की द्विरुक्ति होती है; जैसे “सवा-सवा गज', "ढाई-ढाई सौ रुपये", “पौने दो-दो मन”, “साढे पाँच-पाँच हजार", इत्यादि