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क्रिया का धातु “जा", और "होती है" क्रिया का धातु "हो" है।

(अ) धातु के अंत में "ना" जोड़ने से जो शब्द बनता है उसे क्रिया का साधारण रूप कहते हैं; जैसे—भागना, आना, जाना, होना, इत्यादि। कोई कोई भूल से इसी साधारण रूप को धातु कहते हैं। कोश में भाग, आ, जा, हो, इत्यादि धातुओं के बदले क्रिया के साधारण रूप, भागना, आना, जाना, हेाना, इत्यादि लिखने की चाल है।
(आ) क्रिया का साधारण रूप क्रिया नहीं है; क्योंकि उसके उपयोग से हम किसी वस्तु के विषय में विधान नहीं कर सकते। विधि-काल के रूप को छोड़कर क्रिया के साधारण रूप का प्रयोग संज्ञा के समान होता है। कोई कोई इसे क्रियार्थक संज्ञा कहते हैं; परंतु यह क्रियार्थक संज्ञा भाव-वाचक संज्ञा के अंतर्गत है। उदा॰—"पढ़ना एक गुण है"। "मैं पढ़ना सीखता हूँ।" "छुट्टी में अपना पाठ पढ़ना।" अंतिम वाक्य में पढ़ना क्रिया (विधि-काल में) है।
(इ) कई एक धातुओं का प्रयोग भी भाववाचक संज्ञा के समान होता है, जैसे, "हम नाच नहीं देखते।" "आज घोड़ों की‌ दौड़ हुई।" "तुम्हारी जाँच ठीक नहीं निकली।
(ई) किसी वस्तु के विषय में विधान करनेवाले शब्दों को क्रिया इसलिए कहते हैं, कि अधिकांश धातु जिनसे ये शब्द बनते हैं क्रियावाचक हैं; जैसे, पढ़, लिख, उठ, बैठ, चल, फेंक, काट, इत्यादि। कोई कोई धातु स्थिति-दर्शक हैं, जैसे, सो, गिर, मर, हो, इत्यादि और कोई कोई विकारदर्शक हैं; जैसे, बन, दिख, निकल, इत्यादि।

[टी॰—क्रिया के जो लक्षण हिंदी व्याकरणों में दिये गये हैं उनमें से प्रायः सभी लक्षणों में क्रिया के अर्थ का विचार किया गया है, जैसे,-"क्रिया