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(अ) कर्त्ता का अर्थ है "करनेवाला"। क्रिया के व्यापार का करनेवाला (प्राणी वा पदार्थ) "कर्त्ता" कहलाता है। जिस शब्द से इस करनेवाले का बाध होता है उसे भी (व्याकरण में) बहुधा "कर्त्ता" कहते हैं; पर यथार्थ में शब्द कर्त्ता नहीं हो सकता। शब्द को कर्त्ता कारक अथवा कर्तृ पद कहना चाहिए। जिन क्रियाओं से स्थिति वा विकार का बोध होता है उनका कर्त्ता वह पदार्थ है जिसकी स्थिति वा विकार के विषय में विधान किया जाता है; जैसे, "स्त्री चतुर है।" "मंत्री राजा हो गया।" इत्यादि।
(आ) धातु से सूचित होनेवाले व्यापार का फल कर्त्ता से निकलकर जिस वस्तु पर पड़ता है उसे कर्म कहते हैं; जैसे, "सिपाही चोर को पकड़ता है।" "नौकर चिठ्ठी लाया"। पहले वाक्य में "पकड़ता है।" क्रिया का फल कर्त्ता से निकल कर चोर पर पड़ता है; इसलिए "चोर" कर्म है। दूसरे वाक्य में "लाया" क्रिया का फल चिट्ठी पर पड़ता है; इसलिए "चिट्ठी" कर्म है। "सकर्मक" शब्द का अर्थ है "कर्म के सहित" और कर्म के साथ आने ही से क्रिया "सकर्मक" कहलाती है।

१९१—जिस धातु से सूचित होनेवाला व्यापार और उसका फल कर्त्ता ही पर पड़े उसे अकर्मक धातु कहते हैं; जैसे, "गाड़ी चली"। "लड़का सोता है।" पहले वाक्य मे "चली" क्रिया का व्यापार और उसका फल "गाड़ी" कर्त्ता ही पर पड़ता है; इसलिए "चली" क्रिया अकर्मक है। दूसरे वाक्य में "सोता है।" क्रिया भी अकर्मक है, क्योंकि उसका व्यापार और फल "लड़का" कर्ता ही पर पड़ता है। "अकर्मक" शब्द का अर्थ है "कर्म-रहित" और कर्म के न होने ही से क्रिया "अकर्मक" कहाती है।