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१९९—मूल-धातु वे हैं जो किसी दूसरे शब्द से न बने हों, जैसे, करना, बैठना, चलना, लेना।

२००—जो धातु किसी दूसरे शब्द से बनाये जाते हैं वे यौगिक धातु कहाते हैं; जैसे, "चलना" से "चलाना", "रंग" से "रँगना", "चिकना" से "चिकनाना" इत्यादि।

(अ) संयुक्त धातु यौगिक धातु का एक भेद है।

[सूचना—जो धातु हिंदी में मूल-धातु माने जाते हैं उनमें बहुत से प्राकृत के द्वारा संस्कृत धातुओं से बने हैं; जैसे, सं॰—कृ, प्रा॰—कर, हिं॰—कर। सं॰—भू, प्रा॰—हो, हिं॰—हो। संस्कृत अथवा प्राकृत के धातु चाहे यौगिक हों चाहे मूल, परंतु उनसे निकले हुए हिंदी धातु मूल ही माने जाते हैं; क्योंकि व्याकरण में, दूसरी भाषा से आये हुए शब्दों की मूल व्युत्पत्ति का विचार नहीं किया जाता। यह विषय कोष का है। हिंदी ही के शब्दों से अथवा हिंदी प्रत्ययों के योग से जो धातु बनते है उन्हीं को, हिदी में, यौगिक मानते हैं।]

२०१—यौगिक धातु तीन प्रकार से बनते हैं-(१) धातु से प्रत्यय जोड़ने से सकर्मक तथा प्रेरणार्थक धातु बनते हैं, (२) दूसरे शब्द-भेदों में प्रत्यय जोड़ने से नाम-धातु बनते हैं और (३) एक धातु में एक या दो धातु जाड़ने से संयुक्त धातु बनते हैं।

[सूचना—यद्यपि यौगिक धातुओं का विवेचन व्युत्पत्ति का विषय है। तथापि सुभीते के लिए हम प्रेरणार्थक धातुओं को और नाम-धातुथों का विचार इसी अध्याय में, और संयुक्त धातुओं का विचार क्रिया के रूपतर-प्रकरण में करेंगे।

(१) प्रेरणार्थक धातु

२०२—मूल धातु के जिस विकृत रूप से क्रिया के व्यापार में कर्त्ता पर किसी की प्रेरणा समझी जाती है उसे प्रेरणार्थक धातु कहते हैं; जैसे, "बाप लड़के से चिट्ठी लिखवाता है।" इस वाक्य में मूल धातु "लिख" का विकृत रूप "लिखवा" है जिससे जाना