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जाता है कि लड़का लिखने का व्यापार बाप की प्रेरणा से करता है, इसलिए "लिखवा" प्रेरणार्थक धातु है और "बाप" प्रेरक कर्त्ता तथा "लड़का" प्रेरित कर्त्ता है। "मालिक नौकर से गाड़ा चलवाता है।" इस वाक्य मे "चलवाता है" प्रेरणार्थक क्रिया, "मालिक" प्रेरक कर्त्ता और "नौकर" प्रेरित कर्त्ता है।

२०३—आना, जाना, सकना, होना, रुचना, पाना, आदि धातुओं से अन्य प्रकार के धातु नहीं बनते। शेष सब धातुओं से दो दो प्रकार के प्रेरणार्थक धातु बनते हैं, जिनका पहला रूप बहुधा सकर्मक क्रिया ही के अर्थ में आता है और दूसरे रूप से यथार्थ प्रेरणा समझी जाती है, जैसे, "घर गिरता है।" "कारीगर घर गिराता है।" "कारीगर नौकर से घर गिरवाता है।" "लोग कथा सुनते हैं।" "पंडित लोगों को कथा सुनाते हैं। "पंडित शिष्य से श्रोताओं को कथा सुनवाते हैं।"

(अ) सब प्रेरणार्थक क्रियाएँ सकर्मक होती हैं, जैसे, "दबी बिल्ली चूहों से कान कटाती है।" "लड़के ने कपड़ा सिलवाया।" पीना, खाना, देखना, समझना, देना, पढ़ना, सुनना, आदि क्रियाओं के दोनों प्रेरणार्थक रूप द्विकर्मक होते हैं, जैसे, "प्यासे को पानी पिलाओ।" "बाप ने लड़के को कहानी सुनाई।" "बच्चे को रोटी खिलवाओ।"

२०४—प्रेरणार्थक क्रियाओं के बनाने के नियम नीचे दिये जाते हैं—

१—मूल धातु के अंत में "आ" जोड़ने से पहला प्रेरणार्थक और "वा" जोड़ने से दूसरा प्रेरणार्थक रूप बनता है, जैसे,

मू॰ धा॰ प॰ प्रे॰ दू॰ प्रे॰
उठ-ना उठा-ना उठवा-ना
औट-ना औटा-ना औटवा-ना