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१—धातु के आद्य स्वर को दीर्घ करने से, जैसे,

कटना—काटना पिसना—पीसना
दबना—दाबना लुटना—लूटना
बँधना—बाँधना मरना—मारना
पिटना—पीटना पटना—पाटना

(अ) "सिलना" का सकर्मक रूप "सीना" होता है।

२—तीन अक्षरों के धातु में दूसरे अक्षर का स्वर दीर्घ होता है, जैसे,

निकलना—निकालना उखड़ना—उखाड़ना
सम्हलना—सम्हालना बिगड़ना—बिगाड़ना

३—किसी किसी धातु के आद्य इ वा उ को गुण करने से, जैसे,

फिरना—फेरना खुलना—खोलना
दिखना—देखना घुलना—घोलना
छिदना—छेदना मुड़ना—मोड़ना

४—कई धातुओं के अंत्य ट के स्थान में ड हो जाता है, जैसे,

जुटना—जोड़ना टूटना—तोड़ना
छूटना—छोड़ना फटना—फाड़ना
फूटना—फोड़ना

(आ) "बिकना" का सकर्मक "बेचना" और "रहना" का "रखना" होता है।

२०८—कुछ धातुओं का सकर्मक और पहला प्रेरणार्थक रूप अलग अलग होता है और दोनो में अर्थ का अंतर रहता है, जैसे, "गड़ना" का सकर्मक रूप "गाड़ना" और पहला प्रेरणार्थक "गड़ाना" है। "गाड़ना" का अर्थ "धरती के भीतर रखना" है और "गड़ाना" का एक अर्थ "चुभाना" भी है। ऐसे ही "दाबना" और "दबाना" में अंतर है।