(२) नाम-धातु।
२०९—धातु को छोड़ दूसरे शब्दों में प्रत्यय जोड़ने से जो धातु बनाये जाते हैं उन्हे नाम-धातु कहते हैं। ये संज्ञा वा विशेषण के अंत में "ना" जोड़ने से बनते हैं।
(अ) संस्कृत शब्दों से; जैसे,
उद्धार-उद्धारना, स्वीकार-स्वीकारना (व्यापार में "सकारना"), धिक्कार-धिक्कारना, अनुराग-अनुरागना, परितोष-परितोषना। इस प्रकार के शब्द कभी कभी कविता में आते हैं और ये शिष्ट सम्मति से ही बनाये जाते हैं।
(आ) अरबी, फारसी शब्दों से, जैसे,
गुज़र=गुज़रना, | खरीद=खरीदना, |
बदल=बदलना, | दाग=दागना, |
खर्च=खर्चना, | आज़मा=आज़माना, |
फ़र्मा=फ़र्माना, |
इस प्रकार के शब्द अनुकरण से नये नहीं बनाये जा सकते।
(इ) हिंदी शब्दों से (शब्द के अंत में 'आ' करके और आद्य "आ" को ह्रस्व कर के) जैसे,
दुख-दुखाना, | बात-बतियाना, बताना। |
चिकना-चिकनाना, | हाथ-हथियाना। |
अपना-अपनाना, | पानी-पनियाना। |
लाठी-लठियाना, | रिस-रिसाना। |
विलग-विलगाना। |
इस प्रकार के शब्दों का प्रचार अधिक नहीं है। इनके बदले बहुधा संयुक्त क्रियाओं का उपयोग होता है, जैसे, दुखाना—दुख देना; बतियाना—बात करना, अलगाना—अलग करना, इत्यादि।
२१०—किसी पदार्थ की ध्वनि के अनुकरण पर जो धातु बनाये