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(ई) क्रिया-विशेषणों की द्विरुक्ति से; जैसे, धीरे-धीरे, जहाँ-जहाँ, कब-कब, कहाँ-कहाँ, बकते-बकते, बैठे-बैठे, पहले-पहल, इत्यादि।
(उ) दो भिन्न भिन्न क्रिया-विशेषणों के मेल से, जैसे, जहाँ-तहाँ, जहाँ कहीं, जब-तब, जव-कभी, कल-परसों, तले-ऊपर, आस-पास, आमने-सामने, इत्यादि।
(ऊ) दो समान अथवा असमान क्रिया-विशेषणों के बीच में न रखने से; जैसे, कभी-न-कभी, कही-न-कही, कुछ-न-कुछ, इत्यादि।
(ऋ) अनुकरणवाचक शब्दों की द्विरुक्ति से, जैसे, गटगट, तड़तड़, सटासट, धड़ाधड़, इत्यादि।
(ए) संज्ञा और विशेषण के मेल से; जैसे, एक-साथ, एक-बार, दो-बार, हर घड़ी, जबरदस्ती, लगातार, इत्यादि।
(ऐ) अव्यय और दूसरे शब्दों के मेल से; जैसे, प्रतिदिन, यथा-क्रम, अनजाने, सदेह, बे-फ़ायदा, आजन्म, इत्यादि।
(ओ) पूर्वकालिक कृदंत (करके) और विशेषण के मेल से; जैसे, मुख्य-करके, विशेष-करके, बहुत-करके, एक-एक-करके, इत्यादि।

२१८—दूसरे शब्द-भेद जो बिना किसी रूपांतर के क्रिया-विशेषण के समान उपयोग में आते हैं उन्हे स्थानीय क्रिया-विशेषण कहते हैं। ये शब्द किसी विशेष स्थान ही में क्रिया-विशेषण होते हैं; जैसे,

(अ) संज्ञा—"तुम मेरी मदद पत्थर करोगे! "वह अपना सिर पढ़ेगा!"
(आ) सर्वनाम—लीजिये महाराज, मैं यह चला। (मुद्रा॰)। कोतवाल जी तो वे आते हैं। (शकु॰)।' हिंसक जीव मुझे क्या मारेंगे!" (रघु॰)। "तुम्हें यह बात कौन कठिन है!" इत्यादि।