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को—इधर को, दिन को, रात का, अत को।

से—धर्म से, मन से, प्रेम से, इधर से, तब से।

में—संक्षेप में, इतने में, अंत में।

का—सवेरे का, कब का।

तक—आज तक, यहाँ तक, रात तक, घर तक।

कर, करके—दौड़कर, उठकर, देखकर के, धर्म करके, भक्ति करके, क्योंकर।

भर—रातभर, पलभर, दिनभर।

(अ) नीचे लिखे प्रत्ययों और शब्दों से सार्वनामिक क्रियाविशेषण बनते हैं-

ए—ऐसे, कैसे, जैसे, वैसे, तैसे, थोड़े।

हाँ—यहाँ, वहाँ, कहाँ, जहाँ, तहाँ।

धर—इधर, उधर, जिधर, तिधर।

यों—यों, त्यों, ज्यों, क्यों।

लिए—इसलिए, जिसलिए, किसलिए।

ब—अब, तब, कब, जब।

(३) उर्दू क्रियाविशेषण।

अन—जबरन, फौरन, मसलन, इत्यादि।

२२६—सामासिक क्रियाविशेषण अर्थात् अव्ययीभाव समासों का विचार व्युत्पत्ति-प्रकरण में किया जायगा।यहाँ उनके कुछ उदाहरण दिये जाते हैं—

(१) संस्कृत अव्ययीभाव समास।

प्रति—प्रतिदिन, प्रतिपल, प्रत्यक्ष।

यथा—यथाशक्ति, यथाक्रम, यथासंभव।

निः—निःसंदेह, निर्भय, निःशंक।