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शरीर आधा जला है, कहीं बिलकुल कच्चा है!" (सत्य॰)। आश्चर्य में "कहीं" का प्रयोग "कभी" के समान होता है; "कहीं डूबे तिरे हैं!" "पत्थर भी कहीं पसीजता है।"

परे—इसका प्रयोग बहुधा तिरस्कार में होता है, जैसे, "परे हो!" "परे हट!"

इधर-उधर (यहाँ-वहाँ)—इन दुहरे क्रियाविशेषणों से विचित्रता का बोध होता है; जैसे, "इधर तो तपस्वियों का काम, उधर बड़ों की आज्ञा।" (शकु॰)। "सुत-सनेह इत बचन उत, संकट परेउ नरेश।" (राम॰)। तुम यहाँ यह भी कहते हो, वहाँ वह भी कहते हो।"

योंही—इसका अर्थ 'अकारण' है, जैसे, "लड़का योंही फिरा करता है। इसका अर्थ "इसी तरह" भी है।

मानो—यह "जैसे" का पर्यायवाचक है और उसके समान बहुधा "ऐसे" के साथ उपमा (उत्प्रेक्षा) में आता है; जैसे, "यह चित्र ऐसा सुहावना लगता है मानो साक्षात् सुंदरापा आगे खड़ा है।" (शकुं॰)।

जब तक—यह बहुधा निषेधवाचक वाक्य में आता है, जैसे, "जब तक मैं न आऊँ तुम यहीं रहना।"

तब तक—इसका अर्थ भी कभी कभी "इतने में" होता है, जैसे, "ये दुख तो थे ही, तब तक एक नया घाव और हुआ।" (शकु॰)।

जहाँ—इसका अर्थ कभी कभी "जब होता है, जैसे, "जहँ अस दशा जड़न की बरनी। को कहि सकै सचेतन करनी।" (राम॰)।

जहाँ-तक—इसका अर्थ बहुधा परिमाणवाचक होता है, जैसे, "जहाँ तक हो सके, टेढ़ी गलियाँ सीधी कर दी जावे।"

"यहाँ तक" और "कहाँ तक" भी परिमाणवाचक होते हैं;