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केवल—यह अर्थ के अनुसार कभी विशेषण, कभी क्रियाविशेषण और कभी समुच्चयबोधक होता है; जैसे, "रामहि केवल प्रेम पियारा।" (राम॰)। "केवल लड़का चिल्लाता है।"

"करती हुई विकट तांडव सी मृत्यु निकट दिखलाती है।
केवल एक तुम्हारी आशा प्राणों को अटकाती है।"—(क॰ क॰)।

बहुधा, प्रायः—ये शब्द सर्वव्यापक विधानों को परिमित करने के लिए आते हैं। "बहुधा" से जितनी परिमिति होती है उसकी अपेक्षा "प्रायः" से कम होती है; जैसे, "वे सब बहुधा बलवान शत्रुओं से सब तरफ घिरे रहते थे।" (स्वा॰)। "इसमें प्रायः सब श्लोक चंडकौशिक से उद्धृत किये गये हैं।" (सत्य॰)।

तो—इससे निश्चय और आग्रह सूचित होता है। यह किसी भी शब्दभेद के साथ आ सकता है; जैसे, "तुम वहाँ गये तो थे" "किताब तुम्हारे पास तो थी।" इसके साथ "नहीं" और "भी" आते हैं; और ये संयुक्त शब्द ("नहीं तो," "तो भी") समुच्चय बोधक होते हैं। (अं॰—२४४-५ )। "यदि" के साथ दूसरे वाक्य मेँ आकर "तो" समुच्चय बोधक होता है, जैसे, "यदि ठंढ न लगे तो यह हवा बहुत दूर तक चली जाती है।"

ही—यह भी "तो" के समान किसी भी शब्द-भेद के साथ आकर निश्चय सूचित करता है। कहीं कहीं यह पहले शब्द के साथ संयोग के द्वारा मिल जाता है। जैसे, अब+ही=अभी, कब+ही=कभी, तुम+ही=तुम्ही, सब+ही=सभी, किस+ही=किसी। उदा॰—"एक ही दिन में," "दिन ही में," "दिन में ही," "पास ही," "आ ही गया," "जाना ही था।" , तो और ही समान शब्दों के बीच भी आते हैं, जैसे, "एक एक " "कोई कोई," "कभी कभी," "बात ही बात में,"