पृष्ठ:हिंदी व्याकरण.pdf/१९२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(१७१)

"पास ही पास," "आते ही आते," "लड़का गया तो गया ही गया," "दाग तो दाग, पर ये गढे क्योंकर पड़ गये?" (गुटका॰)। "ही" सामान्य भविष्यत्-काल के प्रत्यय के पहले भी लगा दिया जाता है, जैसे, "हम अपना धर्म तो प्राण रहे तक निबाहैं-ही-गे" (नील॰)।

मात्र, भर, तक—ये शब्द कभी कभी संज्ञाओं के साथ प्रत्ययों के रूप में आकर उन्हें क्रियाविशेषण-वाक्यांश बना देते हैं। (अ॰—२२५)। इस प्रयोग के कारण कोई कोई इनकी गिनती सबंधसूचकों में करते हैं। कभी कभी इनका प्रयोग दूसरे ही अर्थों में होता है—

(अ) "मात्र" संज्ञा और विशेषण के साथ "ही" (केवल) के अर्थ में आता है, जैसे, "एक लज्जा मात्र बची है।" (सत्य॰)। "राम मात्र लघु नाम हमारा।" (राम॰)। "एक साधन मात्र आपका शरीर हो अब अवशिष्ट है।" (रघु॰)। कभी कभी "मात्र" का अर्थ "सब" होता है, जैसे, "शिवजी ने साधन मात्र को कील दिया है।" (सत्य॰)। "हिंदी-भाषा-भाषी मात्र उनके चिर कृतज्ञ भी रहेंगे।" (विभक्ति॰)।
(आ) "भर" परिमाणवाचक संज्ञाओं के साथ आकर विशेषण होता है, जैसे, "सेर-भर घी," "मुट्ठी-भर अनाज," "कटोरे भर खून," इत्यादि। कभी कभी यह "मात्र के समान "सब" के अर्थ में आता है, जैसे, "मेरी अमलदारी भर मेँ जहाँ जहाँ सड़क हैं।" (गुटका॰)। "कोई उसके राज्य भर में भूखा न सोता।" (तथा)। कहीं कहीं इसका अर्थ "केवल" होता है, जैसे, "मेरे पास कपड़ा भर है।" "उतना भर मैं उसे फिर देऊँगा।" "नौकर लड़के के साथ भर रहा है।"