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(इ) "तक" अधिकता के अर्थ में आता है, जैसे, "कितनी ही पुस्तकों का अनुवाद तो अँगरेजी तक में हो गया है।" "बंग-देश में कमिश्नर तक अपनी भाषा में पुस्तक रचना करते हैं।" (सर॰)। इस अर्थ में यह प्रत्यय बहुधा "भी" (समुच्चय बोधक) का पर्यायवाचक होता है। कभी कभी यह "सीमा" के अर्थ में आता है, जैसे, "इस काम के दस रुपये तक मिल सकते हैं।" "चालक से लेकर वृद्ध तक यह बात जानते हैं" "बंबई तक के सौदागर यहाँ आते हैं।" निषेधार्थक वाक्यों मे "तक" का अर्थ बहुधा "ही" होता है, जैसे, "मैंने उसे देखा तक नहीं है।" "ये लोग हिंदी में चिट्ठी तक नहीं लिखते।"

सा—पूर्वोक्त अव्ययों के समान यह शब्द भी कभी प्रत्यय, कभी संबंध सूचक और कभी क्रियाविशेषण होकर आता है। यह किसी भी विकारी शब्द के साथ लगा दिया जाता है, जैसे, फूलसा शरीर, मुझसा दुखिया, कौनसा मनुष्य, स्त्रियों का सा बोल, अपनासा कुटिल हृदय, मृगसा चंचल। गुणवाचक विशेषणों के साथ यह हीनता सूचित करता है, जैसे, कालासा कपड़ा, ऊँचीसी दीवार, अच्छासा नौकर, इत्यादि। परिमाणवाचक विशेषणो के साथ यह अवधारणबोधक होता है, जैसे, बहुतसा धन, थोड़े से कपड़े, जरासी बात, इत्यादि। इस प्रत्यय का रूप (सा-से-सी) विशेष्य के लिंगवचनानुसार बदलता है। कभी कभी यह संज्ञा के साथ केवल हीनता सूचित करता है, जैसे, "बन मे विथा सी छाई जाती है।" (शकु॰)। "एक जोत सी उतरी चली आती है।" (गुटका॰)। "जल-कण इतने अधिक उड़ते हैं कि धुआँ सा दिखाई देता है।"