बढती-घटती सूचित करते हैं, जैसे, “ज्यों ज्यों भीजै कामरी त्यों त्यों भारी हेय।”
ज्यों का त्यों— पूर्व दशा मे। इस वाक्यांश का प्रयोग बहुधा विशेषण के समान होता है और “का” प्रत्यय विशेष्य के लिग- वचनानुसरि बदलता है। जैसे, “किला अभी तक ज्यों का त्यों खड़ा है।”
जहाँ का तहाँ— पूर्व स्थान में, जैसे, “पुस्तक जहाँ की तहाँ रक्खी है।” इसमें भी विशेष्य के अनुसार विकार होता है।
जहाँ तहाँ— सर्वत्र, जैसे, “जह तहँ मैं देखौं दोउ भाई।” ( राम० )।
जैसे तैसे, ज्यों त्यों करके— किसी न किसी प्रकार से।
उदा०— “जैसे तैसे यह काम पूरा हुआ।” “ज्यों त्यों करके रात काटो।” इसी अर्थ में “कैसा भी करके” और संस्कृत “ग्रेन- केन-प्रकारेण” आते हैं।
अपही, आपही आप, अपने आप, आपसे आप- इनका अर्थ “मन से” वा “अपने ही बल से” होता है। (अं०१२५ओ)।
हेाते होते— क्रम क्रम से; जैसे “यह काम होते हेाते होगा।”
बैठे बैठे— विना परिश्रम कें,जैसे, “लड़का बैठे बैठे खाता है।” खड़े खड़े— तुरंत, जैसे, “यह रुपया खड़े खड़े वसूल हो सकता है।”
काल पाकर— कुछ समय मे; जैसे, “वह काल पाके अशुद्ध हो गया।” (इति०)।
क्यों नहीं— इस वाक्यांश का प्रयोग “हाँ” के अर्थ में होता है, परंतु इससे कुछ तिरस्कार पाया जाता है। उदा०— “क्या तुम वहाँ जाओगे?” “क्यों नहीं।”