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सच पूछिये तो—यह एक वाक्य ही क्रियाविशेषण के समान आता है। इसका अर्थ है "सचमुच।" उदा॰—"सच पूछिये तो मुझे वह स्थान उदास दिखाई पड़ा।"

[टी॰—पहले कहा जा चुका है कि क्रियाविशेषणों का शास्त्रीय वर्गीकरण करना कठिन है, क्योंकि कई शब्दों (जैसे, ही, तो, केवल, हाँ, नहीं, इत्यादि) के विषय में निश्चयपूर्वक यह नहीं कहा जा सकता कि ये क्रियाविशेषण ही है। पहले इस बात का भी उल्लेख हो चुका है कि कोई कोई वैयाकरण अव्यय के भेद नहीं मानते, परंतु उन्हें भी कई एक अव्ययों का प्रयोग वा अर्थ अलग अलग बताने की आवश्यकता होती है। क्रियाविशेषणों का यथासाध्य व्यवस्थित विवेचन करने के लिए हमने उनका वर्गीकरण तीन प्रकार से किया है। कुछ क्रियाविशेषण वाक्य में स्वतंत्रतापूर्वक आते हैं और कुछ दूसरे वाक्य वा शब्द की अपेक्षा रखते हैं। इसलिए प्रयोग के अनुसार उनका वर्गीकरण करने की आवश्यकता हुई। प्रयोग के अनुसार जो तीन भेद किये गये हैं उनमें से अनुबद्ध क्रियाविशेषणों के संबंध में यह शंका हो सकती है कि जब इनमें से कुछ शब्द एक बार (यौगिक क्रियाविशेषणों में) प्रत्यय माने गये हैं तब फिर उनको अलग से क्रियाविशेषण मानने का क्या कारण है? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि इन शब्दों का प्रयोग दो प्रकार से होता है। एक तो ये शब्द बहुधा संज्ञा के साथ आकर क्रिया वा दूसरे शब्द से उसका संबंध जोड़ते हैं, जैसे, रात भर, क्षण मात्र, नगर तक, इत्यादि, और दूसरे ये क्रिया वा विशेषण अथवा क्रियाविशेषण के साथ आकर उसीकी विशेषता बताते है, जैसे, एक मात्र उपाय, बड़ा ही सुंदर, जाओ तो, आते ही, लड़का चलता तक नहीं, इत्यादि। इस दूसरे प्रयोग के कारण ये शब्द क्रियाविशेषण माने गये हैं। यह दुहरा प्रयोग आगे, पीछे, साथ, ऊपर, पहले, इत्यादि कालवाचक और स्थानवाचक क्रियाविशेषणों में भी पाया जाता है जिसके कारण इनकी गणना सबंध-सूचकों में भी होती है। जैसे, "घर के आगे" "समय के पहले" "पिता के साथ" इत्यादि। कोई कोई इन अव्ययों का एक अलग भेद ("अवधारणबोधक" के नाम से) मानते हैं, और कोई कोई इनको केवल संबंध-सूचकों में गिनते हैं। हिंदी के अधिकांश व्याकरणों में इन शब्दों का व्यवस्थित विवेचन ही नहीं किया गया है।